सुना सहसा उसने
और दिल बैठ गया
तड़प रहे अंतस में
नया डर पैठ गया
तकिये पर सिर छिपा
विवश वह लेट गया
आंसुओं की परतें अनगिन
दर्द में समेट गया
अगले रविवार फिर
वही मंजर आयेगा
मौन-प्रेम सिसकेगा
तडपकर मर जाएगा
एक कन्या बेमन से अनचाहा वर वरेगी
प्यार के शव पर ही मांग वह भरेगी
अभी उसके व्याह का आमंत्रण आया है
चंद्रमा विलुप्त हुआ, ग्रहण गहराया है
सुना सहसा उसने
और दिल बैठ गया
तड़प रहे अंतस में
नया डर पैठ गया
कितने ग्रहण ऐसे भग्न-हृदय में विलसते
राहु कितने चन्द्र और सूर्य नित्य डसते ?
(मौलिक व् अप्रकाशित )
Comment
विजय सर i
आपका हार्दिक आभार i सादर i
अनुज भंडारी जी
आपकी टीप से कृतकृत्य हुआ i सादर i
आ० हरि प्रकाश जी
आपकी टीप से अनुगृहीत हुआ i सादर i
आ० समर कबीर जी
आपका आभार i
बहुत-बहुत सुंदर. दिल को छू जाती रचना. उत्कृष्ट प्रस्तुति पर ह्रदय से बधाई आदरणीय डा.गोपाल जी
सुना सहसा उसने
और दिल बैठ गया
तड़प रहे अंतस में
नया डर पैठ गया
कितने ग्रहण ऐसे भग्न-हृदय में विलसते
राहु कितने चन्द्र और सूर्य नित्य डसते ?
आदरणीय गोपालनारायण सर ,ग़ज़ल और कविता एक ही नदी की दो धाराएँ हैं ,मुझे अपनी एक ग़ज़ल का शेर याद आ रहा है
'कानों में इक सिसकी सीसा घोल गई \मुझको अब शहनाई से डर लगता है'
इतनी मार्मिक और मासूम कविता ,प्रेमी हृदय की पीड़ा का इतना जीवंत निर्वहन ,वह भी आध्यात्मिकता से परिपूर्ण श्रेष्ट कविता करने वाले संत कवि की कलम से ,नमन है सर |हार्दिक बधाई |सादर अभिनन्दन |
आदरणीय डॉ.गोपाल नारायन श्रीवास्तव सर ,सुन्दर रचना हेतु हार्दिक बधाई निवेदित है.. सादर
बहुत ही मार्मिक प्रस्तुति है,, आ. गोपाल नारायण जी ,,,,सुन्दर !!!
चंद्रमा विलुप्त हुआ, ग्रहण गहराया है
आदरणीय गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी, अत्यंत मार्मिक, सिहरन पैदा कर गई आपकी रचना। हार्दिक बधाई सर ।
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online