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आदरणीया महिमा जी, आदरणीय जवाहर लालजी, आदरणीया राजेश दीदी आप सभी का तहेदिल से शुक्रिया जो आपने मेरी इस रचना को सराहा
चला जा रहा हूँ सफ़र में मैं पैहम
नहीं इंतिहा है थकन की कहूँ क्या-----लाजबाब
तरसता रहा उम्र भर फूल को वो
ये आराइशें इस कफ़न की कहूँ क्या---मार्मिक उम्दा
मुझे लूटकर घर तलक छोडा़ उसने
वफ़ा देखिये राहजन की कहूँ क्या-----क्या बात
बहुत सुन्दर ग़ज़ल शिज्जू भैय्या हार्दिक बधाई
गजब शब्द संयोजन और भाव भी प्रशंसनीय!
तरसता रहा उम्र भर फूल को वो
ये आराइशें इस कफ़न की कहूँ क्या
मुझे लूटकर घर तलक छोडा़ उसने
वफ़ा देखिये राहजन की कहूँ क्या......लाजबाव .. हर शेर एक से बढ़कर एक है..आपको हार्दिक बधाइयाँ
आदरणीय शिज्जु भाई , बेमिसाल ग़ज़ल कही है , हर शे र के लिये आपकोअ हार्दिक बधाइयाँ ॥
तरसता रहा उम्र भर फूल को वो
ये आराइशें इस कफ़न की कहूँ क्या -- एक दुखद सच्चाई !! क्या बात है । हार्दिक बधाइयाँ ॥
आ० शिज्जू जी
आपकी गजल हो और दिल वाह वाह न करे यह कैसे हो सकता है i आपको एक और अच्छी गजल पर होली की बधाई i सादर i
सुन्दर गज़ल!
आदरणीय शिज्जू सर सुन्दर प्रस्तुति हैं....
तरसता रहा उम्र भर फूल को वो
ये आराइशें इस कफ़न की कहूँ क्या ...........वाह ...हार्दिक बधाई !
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