For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मानव मन दुर्बल हुआ, जो पूजे इंसान ।
अंतर ईश मनुष्य का, ना समझे नादान।।

पंक घृणा के फेंककर, कहलाये भगवान।
इतनी सी इस बात को, समझे ना इंसान।।

अपनी अपनी है समझ, अपना अपना पंथ।
मन से दुर्बल के लिये, व्यर्थ सभी हैं ग्रंथ।।

रहे हृदय में आस्था, श्रृद्धा में हो ईश
बस उसके ही नाम पर, नत रखना तू शीश।।

मानव को मानव समझ, ऐसा रख व्यवहार।
बने हँसी का पात्र तू, ऐसा क्या आचार।।

-मौलिक व अप्रकाशित

Views: 649

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by दिनेश कुमार on February 17, 2015 at 9:12am
मन से दुर्बल के लिये, व्यर्थ सभी हैं ग्रंथ...लगता है मेरे लिए ही कहा है आप ने आदरणीय शिज्जू भाई जी।

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on February 15, 2015 at 10:00am

भाई शिज्जूजी, आपके दोहे यथार्थ व्यवहार का आईना हुआ करते हैं. साथ ही, कथ्य के लिए शब्द भी सहज ढंग से व्यवहृत होते हैं.
निम्नलिखित दोहे के लिए तो मैं बार-बार बधाइयाँ दे रहा हूँ. यह एक कालजयी सोच को मिला छान्दसिक कथ्य है. इस दोहे को मैं अपने पास रख रहा हूँ, भाई.

अपनी अपनी है समझ, अपना अपना पंथ।
मन से दुर्बल के लिये, व्यर्थ सभी हैं ग्रंथ।।

निम्नलिखित दोहा भी नीतिपरक है.
 
मानव को मानव समझ, ऐसा रख व्यवहार।
बने हँसी का पात्र तू, ऐसा क्या आचार।।

रहे आस्था हृदय में, इस विषम चरण को मैं शब्द कलों के अटपटे होने के कारण मैं अनुमोदित नहीं कर सकता. हालाँकि, दोहा छन्द पर काम करने वाले कई विद्वान इसे स्वीकार कर लेते हैं. लेकिन क्यों, इसका जवाब शायद ही हो.

इस प्रस्तुति केलिए हार्दिक बधाई
 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on February 15, 2015 at 3:25am

आदरणीय शिज्जु भाई जी सुन्दर दोहावली हेतु हार्दिक बधाई 

Comment by नादिर ख़ान on February 14, 2015 at 3:08pm

मानव मन दुर्बल हुआ, जो पूजे इंसान ।
अंतर ईश मनुष्य का, ना समझे नादान।।

जनाब शिज्जु भाई सभी दोहे पसंद आए ढेरों मुबारकबाद इस उत्तम रचना के लिए ।

Comment by Hari Prakash Dubey on February 14, 2015 at 9:07am

आदरणीय शिज्जू सर सुन्दर प्रस्तुति हैं....शानदार दोहे, दिल से बधाई सादर !

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on February 13, 2015 at 7:36pm

शिज्जू भाई

आपने बहुत सुन्दर दोहे कहें i केवल  एक दोहे में प्रवाह  बाधित है वह यो हो सकता है -रहे आस्था हृदय में,  श्रृद्धा में हो ईश i

 स्सदर i

Comment by gumnaam pithoragarhi on February 13, 2015 at 6:54pm


अपनी अपनी है समझ, अपना अपना पंथ।
मन से दुर्बल के लिये, व्यर्थ सभी हैं ग्रंथ।।

बहुत खूब दोहे कहे हैं सर जी बधाई

Comment by Shyam Narain Verma on February 13, 2015 at 10:42am
सुन्दर और सामयिक दोहे , बहुत खूब...

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 13, 2015 at 8:14am

आदरणीय शिज्जु भाई , सुन्दर संदेश देती आपकी दोहा वली बहुत भायी ।

अपनी अपनी है समझ, अपना अपना पंथ।
मन से दुर्बल के लिये, व्यर्थ सभी हैं ग्रंथ।।   इस दोहे का तो जवाब नहीं । दिली बधाई स्वीकार करें ॥

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"रोला छंद . . . . हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।सदा सत्य के साथ , राह  पर …"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service