मानव मन दुर्बल हुआ, जो पूजे इंसान ।
अंतर ईश मनुष्य का, ना समझे नादान।।
पंक घृणा के फेंककर, कहलाये भगवान।
इतनी सी इस बात को, समझे ना इंसान।।
अपनी अपनी है समझ, अपना अपना पंथ।
मन से दुर्बल के लिये, व्यर्थ सभी हैं ग्रंथ।।
रहे हृदय में आस्था, श्रृद्धा में हो ईश।
बस उसके ही नाम पर, नत रखना तू शीश।।
मानव को मानव समझ, ऐसा रख व्यवहार।
बने हँसी का पात्र तू, ऐसा क्या आचार।।
-मौलिक व अप्रकाशित
Comment
भाई शिज्जूजी, आपके दोहे यथार्थ व्यवहार का आईना हुआ करते हैं. साथ ही, कथ्य के लिए शब्द भी सहज ढंग से व्यवहृत होते हैं.
निम्नलिखित दोहे के लिए तो मैं बार-बार बधाइयाँ दे रहा हूँ. यह एक कालजयी सोच को मिला छान्दसिक कथ्य है. इस दोहे को मैं अपने पास रख रहा हूँ, भाई.
अपनी अपनी है समझ, अपना अपना पंथ।
मन से दुर्बल के लिये, व्यर्थ सभी हैं ग्रंथ।।
निम्नलिखित दोहा भी नीतिपरक है.
मानव को मानव समझ, ऐसा रख व्यवहार।
बने हँसी का पात्र तू, ऐसा क्या आचार।।
रहे आस्था हृदय में, इस विषम चरण को मैं शब्द कलों के अटपटे होने के कारण मैं अनुमोदित नहीं कर सकता. हालाँकि, दोहा छन्द पर काम करने वाले कई विद्वान इसे स्वीकार कर लेते हैं. लेकिन क्यों, इसका जवाब शायद ही हो.
इस प्रस्तुति केलिए हार्दिक बधाई
आदरणीय शिज्जु भाई जी सुन्दर दोहावली हेतु हार्दिक बधाई
मानव मन दुर्बल हुआ, जो पूजे इंसान ।
अंतर ईश मनुष्य का, ना समझे नादान।।
जनाब शिज्जु भाई सभी दोहे पसंद आए ढेरों मुबारकबाद इस उत्तम रचना के लिए ।
आदरणीय शिज्जू सर सुन्दर प्रस्तुति हैं....शानदार दोहे, दिल से बधाई सादर !
शिज्जू भाई
आपने बहुत सुन्दर दोहे कहें i केवल एक दोहे में प्रवाह बाधित है वह यो हो सकता है -रहे आस्था हृदय में, श्रृद्धा में हो ईश i
स्सदर i
अपनी अपनी है समझ, अपना अपना पंथ।
मन से दुर्बल के लिये, व्यर्थ सभी हैं ग्रंथ।।
बहुत खूब दोहे कहे हैं सर जी बधाई
सुन्दर और सामयिक दोहे , बहुत खूब... |
आदरणीय शिज्जु भाई , सुन्दर संदेश देती आपकी दोहा वली बहुत भायी ।
अपनी अपनी है समझ, अपना अपना पंथ।
मन से दुर्बल के लिये, व्यर्थ सभी हैं ग्रंथ।। इस दोहे का तो जवाब नहीं । दिली बधाई स्वीकार करें ॥
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