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महिला दिवस: लघुकथा- हरि प्रकाश दुबे

“आज स्त्री दिवस है भाई, अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस, ८ मार्च है ना, समझे कुछ !”

“किस लिए मना रहें हैं भईया, और कबसे ?”

“ अरे यार एकदम बकलोल हो क्या ? अरे महिलाओं के लिए, उनकी क्षमता, सामाजिक, राजनीतिक व आर्थिक तरक़्क़ी दिलाने और उन महिलाओं को याद करने के लिए जिन्होंने महिलाओं के लिए प्रयास किए, अरे १९०९ से मना रहें हैं १०० साल से जयादा हो गए मनाते हुए, कुछ पढ़ते नहीं हो क्या ? !”

“तब भइया, रोज क्यों नहीं मनाते, देखिये न सभी स्त्रीयां सुबह से रात तक घर, परिवार,समाज का कितना काम करती हैं, पर एक सर्वे मैं बता रहा था की 87 प्रतिशत भारतीय स्त्रीयां ज़्यादातर समय तनाव में रहती हैं और 82 प्रतिशत के पास आराम करने के लिए वक़्त नहीं होता।“

“अरे इ सर्वे फर्वे सब बकवास है, अरे ब्रह्मा जी के बाद सबसे बड़ा स्थान नारी का है।“

“आप तो बड़े ज्ञानी हैं भईया, तब रात को दारु पीकर भउजाई को मारे क्यों थे ?”

 

© हरि प्रकाश दुबे

"मौलिक व अप्रकाशित” 

 

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Comment by Dr. Vijai Shanker on March 9, 2015 at 7:04pm
“आप तो बड़े ज्ञानी हैं भईया, तब रात को दारु पीकर भउजाई को मारे क्यों थे ?”
वह तो पौरुषेय वीरता का इकलौता मानक है , ( व्यंग पर व्यंग )
बहुत सटीक प्रस्तुति, आदरणीय हरी प्रकाश दुबे जी , बधाई, सादर।
Comment by maharshi tripathi on March 9, 2015 at 5:53pm

“आप तो बड़े ज्ञानी हैं भईया, तब रात को दारु पीकर भउजाई को मारे क्यों थे ?,,,,,,,,,,,,,,सहज और सटीक वार ,,,बहुत सुन्दर आ.हरी प्रकाश जी ,,,दिली बधाई |

Comment by Shyam Mathpal on March 9, 2015 at 4:45pm

Aadarniya Dube Ji,

Nari ke bare main hamare vicharon wa wastavikata ka sahi chitran kiya hai.

Kathni wa karni main phark na rahe,

Aadami ko aadami ka dard rahe.

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on March 9, 2015 at 12:51pm

“आप तो बड़े ज्ञानी हैं भईया, तब रात को दारु पीकर भउजाई को मारे क्यों थे

आ० हरिप्रकाश जी

पंच लाईन अच्छी है i सादर i

 

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on March 8, 2015 at 10:03pm

छोटन सो है! पर घाव करे गंभीर!! सारगर्भित रचना पर आपको अभिनन्दन आदरणीय!

Comment by somesh kumar on March 8, 2015 at 9:21pm

दिन-विशेष पर उचित और उपयोगी लघुकथा 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on March 8, 2015 at 8:49pm

वाह्ह्ह एक जबरदस्त सन्देश देती हुई लघु कथा ---इसी को तो कहते हैं कथनी और करनी में फर्क .बहुत बहुत बधाई ...जब तक मानसिकता नहीं सुधरेगी तब  तक महिला दिवस का कोई अर्थ ही नहीं है .

Comment by विनय कुमार on March 8, 2015 at 7:52pm

बहुत सुन्दर लघुकथा दिन विशेष पर | थोड़ी त्रुटियाँ हैं , सुधार लीजिये | बहुत बहुत बधाई..

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