यह है
विचित्रदूनिया
जहाँ सच को मिलती सज़ा
झूठ लेता है मज़ा
यहाँ काटा जाता है
बर्बरिक का सर
ईशा ही चढ़ता है
सूली पर
सुकरातऔर मीरा को
पिलाते है जहर
मारा जाता है
जूलियस सीज़र.
हर पाक दामन को
गंदा करते हैं
कीचड़ डाल कर
जब टूटते है
सामाजिक रिश्ते
बदनाम होते है
फरिश्ते.
मौलिक वा अप्रकाशित
Comment
आदरणीय (मित्रगन) सर्वश्री विजय शॅंकर जी,शिज़्ज़ू "शकूर" जी, महर्षि त्रिपाठी जी,नीरज कुमार "नीर" जी, जितेन्द्र जी,कृष्ण मिश्रा "जान"गोरखपुरी जी,हरी प्रकाश दूबे जी, तथा श्याम जी!
"विचित्र दुनियाँ" पर आप सबों की सराहना से अविभूत हूँ,आप सबों का हार्दिक आभार. स्नेह बनाए रखें.
आदरणीय डॉ विजय प्रकाश सर क्या खूब भावाभिव्यक्ति है बहुत बहुत बधाई आपको इस रचना के लिये
क्या हकीक़त बयां किया है आपने आज की इस दुनिया के बारे में ,,,आपको हार्दिक बधाई आ. Dr.Vijay Prakash Sharma जी |
सत्य है ...
बहुत सुंदर प्रस्तुति,आदरणीय डा.विजय प्रकाश जी. कविता का अंदाज आक्रोशित है पर मन को भा गया. हार्दिक बधाई स्वीकारें
सुन्दर कविता पर हार्दिक बधाईयाँ! आ० डॉक्टर विजय प्रकाश शर्मा जी!
आदरणीय डॉक्टर विजय प्रकाश शर्मा जी, सुन्दर प्रस्तुति ,हार्दिक बधाई ! सादर
Aadarniya Dr.Vijay Prakash Sharma j,
Aapne itihas main jhank kar sahi chitran kiya hai. Aaj bhi ye ho raha hai.
जब टूटते है
सामाजिक रिश्ते
बदनाम होते है फरिश्ते.------ Bahut sundar shabd..... Bahut badhai... aabhar.
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