महिला दिवस पर रचित -
घनाक्षरी – 16-15 वर्ण
कंधें से कंधा मिला काम करे जो खेत में,
भोर में उठ, देर रात तक जगती है |
खुद का वजूद भूल मान रखे आदमी का,
सर्वस्व समर्पण को तैयार रहती है |
शादी कर अनजान घर बसाने, कोख में,
नौ माह तक पीड़ा भी सहती रहती है |
फिर भी स्वयं का नही कोई वजूद मानती,
नाम बच्चें को भी वह बाप का ही देती है |
सर्दी गर्मी वर्षा सहती अंग भी झुलसाती,
दूजे घर काम से पाई पाई जोडती है |
व्रत है कहकर खुद तो भूखी ही सोती,
अपने पति और बच्चों को खाना देती है |
देवी मान पूजते पर, अबला ही मानते,
कष्ट सहकर भी नौकरी जो करती है |
बेबसी में जमीदार के द्वारें ब्याज में ही ,
आँचल से मुहं ढापे, लाज बेच जाती है |
(मौलिक अप्रकाशित)
Comment
आ० भाई लडीवाला जी , बहुत सुन्दर घनाक्षरी रचना हुई है और भाव भी बहुत सुन्दर हैं , हार्दिक बधाई .
आदरणीय लक्ष्मणजी रचना के भाव अच्छे हैं बधाई आपको, पर गेयता बाधित है ज़रा देख लीजियेगा
Aadarninay Laxam Ji,
Bahut hi marmik and hakikat ka drishya prastut kiya aapne . Ek naari pure jivan desaron ke liye jiti hai khud ko bhulakar..... Parinam.. ?
बेबसी में जमीदार के द्वारें ब्याज में ही ,
आँचल से मुहं ढापे, लाज बेच जाती है |,,,,,,अंत तो बहुत बढ़िया आ.लक्ष्मण रामानुज लडीवाला जी ,,बहुत बहुत बधाई आपको |
भावनाओं से ओतप्रोत रचना पर हार्दिक बधाई स्वीकार करें.... |
सर्दी गर्मी वर्षा सहती अंग भी झुलसाती,
दूजे घर काम से पाई पाई जोडती है |
व्रत है कहकर खुद तो भूखी ही सोती,
अपने पति और बच्चों को खाना देती है |
सार्थक रचना पर बहुत बहुत बधाई! आदरणीय लक्ष्मण रामानुज लडीवाला जी!
आदरणीय लक्ष्मण रामानुज लडीवाला जी , बहुत सुन्दर घनाक्षरी रचना और भाव भी बहुत सुन्दर हैं , हार्दिक बधाई आपको इस रचना पर ! सादर
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