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जब ज़माना मेरा मुशीर हुआ
लोग हाकिम तो मैं असीर हुआ
तुझपे पत्थर अगर बरसने लगे
ये समझना तू बेनज़ीर हुआ
जा ब जा बेख़याल फिरता हूँ
ये खबर है कि मैं फकीर हुआ
बेखबर दिल निगाहे क़ातिल तेज़
सो निशाने पर अब के तीर हुआ
तंग हाली ज़बाँ से झाँके है
कौन कहता है वो अमीर हुआ
(मुशीर-सलाहकार, असीर-कैदी, बेनज़ीर-लाजवाब)
-मौलिक व अप्रकाशित
Comment
तुझपे पत्थर अगर बरसने लगे
ये समझना तू बेनज़ीर हुआ वाह वाह ! क्या कहने इस शेर के!
तंग हाली ज़बाँ से झाँके है
कौन कहता है वो अमीर हुआ बहुत ख़ूब!
सुन्दर गज़ल के लिए बहुत बहुत बधाईयां आदरणीय शिज्जू सर जी!!
आदरणीय शिज्जु सर , बहुत खूब, हार्दिक बधाई आपको इस रचना पर ,
तुझपे पत्थर अगर बरसने लगे
ये समझना तू बेनज़ीर हुआ....सुन्दर
जा ब जा बेख़याल फिरता हूँ
ये खबर है कि मैं फकीर हुआ....वाह , सादर !
शिज्जू भाई
सदाबहार . हमेशा की तरह . सादर .
आदरणीय शिज्जु जी . सुन्दर रचना के लिए दिल से बधाई .
आदरणीय शिज्जु भाई जी बेहतरीन और उम्दा ग़ज़ल हुई है, शेर दर शेर दाद हाज़िर है.
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