For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

नया बना भवन अपने रूप और बनावट पर मुग्ध हो रहा था | तभी अंदर से ईंट ने आवाज़ दी " क्यों इतने आत्ममुग्ध दिख रहे हो , रूपवान तो हम भी हैं "|
" हुँह , तुम्हारा रूप किसे दिखता है , सब तो मुझे ही देखते हैं ", भवन ने इतराते हुए कहा |
छड़ ने , कंक्रीट ने भी यही बात दुहरायी , भवन ने वैसे ही जवाब दिया |
ईंट बोली गर मैं हट जाऊं ? कंक्रीट बोला मैं पकड़ ढीली कर दूँ ? छड ने कहा मैं टेढ़ी हो लटक जाऊं?
भवन थोड़ा सोच में पड़ गया |
" तुम इसलिए खूबसूरत दिख रहे हो क्योंकि तुममे हमने अपनी खूबसूरती को आत्मसात कर दिया है ", यह सुनकर भवन को उसके अल्पज्ञान का भान हो गया |
मौलिक एवम अप्रकाशित

Views: 659

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on March 22, 2015 at 9:11pm

बहुत ही सुंदर सन्देश. बधाई स्वीकारें आदरणीय विनय जी.

Comment by Dr. Vijai Shanker on March 22, 2015 at 8:29pm
किसी भी निर्माण में दृश्य से अदृश्य का स्वरुप सदैव बहुत बड़ा होता है। सुन्दर अभिव्यक्ति, बधाई , आदरणीय विनय जी , सादर।

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on March 22, 2015 at 8:06pm

आदरणीय विनय जी, लघुकथा सन्देश छोड़ने में सफल है, अच्छी लघुकथा हुई है, बहुत बहुत बधाई.

Comment by somesh kumar on March 22, 2015 at 7:31pm

लघुकथा का  एक गहन संदेश की अपनी सम्पूर्णता को सराहो और केवल बाहरी अवयव पर आत्म-मुग्ध मत होओ,बचपन में पढ़ी बारहसिंग्हे की कथा याद आ गई |बधाई इस प्रस्तुति

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on March 22, 2015 at 7:01pm

आ० विनय जी

हम इंसानों की आत्ममुग्धता का भी यही हाल है .  सुन्दर . शिक्षाप्रद . सादर .


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on March 22, 2015 at 6:32pm

आत्ममुग्धता पर भवन व् उसके निर्माण की सामग्री का बिम्ब लेकर क्या खूब आईना दिखाया बहुत खूब ...शानदार.

हार्दिक बधाई आपको विनय कुमार जी.  

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
yesterday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Sunday
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Sunday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Saturday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Saturday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service