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जवानी की दहलीज़ पार कर चुकी  विनीता ने फिर से लड़के वालों के आने की खबर सुनते ही अपने घर जाने के अरमानों को संजों लिया. अपनी माँ के खटिया पकड़ने के बाद, उसे अपने पिता समान बड़े भाई और माँ के दर्जे वाली भाभी से ही आशायें बंधी हुई है. आज फिर एक कुलीन परिवार का लड़का, अपनी सहमती जताकर लौट गया. मेहमानों के लौटते ही भाभी ने विनीता से कहा..

“बिन्नो!! मैं ऑफिस के लिए बहुत लेट हो गई हूँ. तुम बच्चों को तैयार कर स्कूल भिजवा देना, माँ जी का कमरा और कपडे देख लेना और सुनो.. मैं तुम्हारे लिए आज वाले लड़के से भी सुंदर राजकुमार ढूंढ कर लाउंगी...”

विनीता अपने काम में जुट गई और अपने अरमानो को फिर से दबाकर, एक नए जीवनसाथी की कल्पना उसके मन में सजने लगी...

जितेन्द्र पस्टारिया

(मौलिक व् अप्रकाशित)  

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Comment by Hari Prakash Dubey on April 15, 2015 at 10:17pm

 आदरणीय  जितेन्द्र भाई साहब ,सुन्दर प्रस्तुति,हार्दिक बधाई  प्रेषित ! सादर

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on April 15, 2015 at 10:13pm

आप ने लघुकथा में मास्टरी की है आदरणीय जितेन्द्र जी 

Comment by vandana on April 15, 2015 at 9:04pm

बहुत बढ़िया ....मर्म छूती रचना आदरणीय 

Comment by विनय कुमार on April 15, 2015 at 8:49pm

बहुत सुन्दर लघुकथा , दूसरों के द्वारा किया गया शोषण काम तकलीफदेह होता है बनिस्पत अपनों के | बहुत बहुत बधाई..

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on April 15, 2015 at 8:01pm

रचना के मर्म ने आपके ह्रदय को छुआ, रचनाकर्म सार्थक हुआ आदरणीय डा.गोपाल जी. आपका ह्रदय से आभार.

सादर!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on April 15, 2015 at 7:58pm

आपकी उपस्थिति हेतु आपका आत्मीय आभार, आदरणीय अमन जी

सादर!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on April 15, 2015 at 7:57pm

लघुकथा पर आपके आशीर्वाद हेतु आपका ह्रदय से आभारी हूँ, आदरणीय डा.विजय जी

सादर!

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on April 15, 2015 at 5:55pm

जीतू भाई

दिल जीत लिया भाई. बहुत सुन्दर .

Comment by aman kumar on April 15, 2015 at 4:39pm

समाज का नगा सत्य !

बधाई हो बंधु !

Comment by Dr. Vijai Shanker on April 15, 2015 at 11:35am
शोषण , वह भी अपनों के ही द्वारा , बधाई, प्रिय जीतेन्द्र जी , सुन्दर प्रस्तुति, सादर।

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