"कुछ सिखाओं अपनी माँ को | शहर में रहते पच्चीसों साल हो गये पर रही गंवार की गंवार |"
" बड़े साहब कितनी बार कहें बैठ जाओ पर ये बैठी नहीं |"
"कइसे बैठती जी, वो 'पैताने' बैठने को कहत रहा | "...सविता मिश्रा
"मौलिक व अप्रकाशित"
Comment
हरी भैया शुक्रिया दिल से
वंदना sis लडकियों को भी पैताने नहीं बैठने देते थे क्योकि उनमे देवी का रूप मानते थे ..मानते तो थोडा अब भी हैं ...सादर आभार आपका
आदरनीय गोपाल चाचाजी और आदरनीया गिरिराज भैया आप दोनों जन को सादर नमस्ते पहले ...
और जबाब राजेश दी के कमेन्ट से मिल ही गया होगा आपको ..मेरे मन को बखूबी राजेश दी और वंदना sis ने पढ़ा और बोला हैं |
सादर आभार आप दोनों जन का मेरा मार्गदर्शन करने के लिय
इस लघु कथा का नाम स्वाभिमान होता तो ज्यादा बेहतर होता|
स्वाभिमान को केन्द्रित कर लिखी गई लघु कथा बहुत शानदार ,मैं नहीं समझती इसमें सम्प्रेषणीयता की कोई कमी है ,संस्कार के अनुसार बड़ों को अर्थात वृद्धों को सिरहाने पर बैठने को कहते हैं वो स्त्री वृद्धा होगी जिसको पैताने पर बैठने में स्वाभिमान आड़े आ रहा होगा वृद्धा भी न हो स्त्री तो थी जिसका सम्मान पहले किया जाता है ..आज के मोर्डन समाज में भी लेडीज फर्स्ट कहकर सम्मान दिया जाता है| बहुत- बहुत बधाई आपको सविता जी
आदरणीया सविता जी , मैं भी कुछ कह नहीं पा रहा हूँ , प्रयासरत रहिये , शुभकामनायें सादर !
बदलते संस्कारों पर चोट करती सार्थक रचना
सच कहा आपने हमारे यहाँ अपने से बड़ों के पैताने बैठने के संस्कार हैं मुझे याद है दादी कहती थीं कोई बात नहीं लड़कियां तो सिरहाने भी बैठ जाती हैं पर माँ और पापा तुरंत कहते ....नहीं यह तो आदत पड़ती है लड़कियां और लड़के एक ही बात सीखें और आज तक बड़ों के आते ही खड़े हो जाना उनके लिए स्थान छोड़ देना सिरहाने न बैठना ये ऐसी बाते हैं जिन्हें देखकर बड़ों का हमेशा आशीर्वाद ही मिला है
आदरनीया सविता जी , आदरणीय गोपाल जी की बातों से मै भी सहमत हूँ , शिल्प का तो ज्ञान नही है पर बात तो मै भी समझ नहीं पाया । प्रयास के लिये आपको बधाई ॥
सिरहाने बैठने को कहता तो क्या उचित होता ? कहानी अपनी बात स्पष्टता से नहीं कह पा रही है . सादर ,.
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online