For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"बापू, हमारे साथ शहर क्यों नहीं चलते ?"
"शहर जा बसेंगे तो खेती कौन करेगा ?"  
"क्या रखा है खेती में ? कभी सूखा फसल को मार जाता है तो कभी बेमौसम बरसात।"
"तुम्हें कैसे समझाऊँ बेटा।"
"खुल कर बताओ बापू, दिल पर कोई बोझ है क्या ?"
"ये अन्नदाता की उपाधि का बोझ है बेटा, तुम नहीं समझोगे ।"      
-------------------------------------------------------------------
(मौलिक एवँ अप्रकाशित)

Views: 834

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on April 22, 2015 at 6:58am

जी बिकुल सही कहा अन्नदाता पर जुम्मेवारियाँ बहुत हैं ....और सरकार ये नहीं समझती सिर्फ़ राजनीती बस और कुछ नहीं ...सादर 

Comment by shree suneel on April 22, 2015 at 1:56am
परिस्थितियां ऐसी कि जिस उपाधि पे गौरवान्वित होना था वही बोझ सी लगने लगी.
इस लघु-कथा के लिए बधाईयां आदरणीय.

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on April 21, 2015 at 11:18pm

किसान की विवशता को प्रभावकारी ढंग से व्यक्त करती सशक्त और सफल लघुकथा पर हार्दिक बधाई निवेदित है आदरणीय योगराज सर.

बहुत दिनों बाद प्रेमचंद की धारा की कोई रचना पढने मिली है जिसमें कृषक वर्ग में मर्म को इतनी बारीकी से अभिव्यक्त किया गया है. इस रचना के लिए धन्यवाद.

Comment by Dr. Vijai Shanker on April 21, 2015 at 11:07pm
.... और बोझ का आत्म-बोध है।बहुत खूब , बहुत सुन्दर लघु-कथा , आदरणीय योगराज प्रभाकर जी , बधाई, सादर।
Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on April 21, 2015 at 9:10pm

बहुत ही संवेदनशील लघुकथा, सर. दिल को छू गई. ह्रदय से बधाईयाँ आपको

Comment by MAHIMA SHREE on April 21, 2015 at 8:09pm

आह.......... इसे पढ़ कर बस यही हूक उठी.। किसानों की हालत 15-16 में इतनी दयनीय हो गई है कि आत्महत्या ही उन्हें इससे छुटकारा पाने का एकमात्र उपाय लगता है .लघुकथा में किसान की विवशता को कम शब्दों में व्यक्त किया गया है जो बेहद प्रभावशाली तरीके से आया है। बधाई स्वीकार करे आ. योगराज सर

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 21, 2015 at 7:26pm

आ0 प्रभाकर सर जी,   सादर प्रणाम!  एक सम्वेदंनशील कथा.  ढेरो बधाईया स्वीकार करे. सादर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 21, 2015 at 7:14pm

प्राकर्तिक एवं राजनैतिक मार से दुखी ,हताश एक जिम्मेदार कृषक की अंतरात्मा की आवाज है ये लघु कथा बहुत मार्मिक ...दिल से बधाई लीजिये आ० योगराज जी,इस सशक्त लघु कथा पर.  

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , ग़ज़ल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका हार्दिक आभार "
12 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। उत्तम गजल हुई है। हार्दिक बधाई। कोई लौटा ले उसे समझा-बुझा…"
13 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी

२१२२       २१२२        २१२२   औपचारिकता न खा जाये सरलता********************************ये अँधेरा,…See More
21 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post छन्न पकैया (सार छंद)
"आयोजनों में सम्मिलित न होना और फिर आयोजन की शर्तों के अनुरूप रचनाकर्म कर इसी पटल पर प्रस्तुत किया…"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन पर आपकी विस्तृत समीक्षा का तहे दिल से शुक्रिया । आपके हर बिन्दु से मैं…"
yesterday
Admin posted discussions
Monday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपके नजर परक दोहे पठनीय हैं. आपने दृष्टि (नजर) को आधार बना कर अच्छे दोहे…"
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"प्रस्तुति के अनुमोदन और उत्साहवर्द्धन के लिए आपका आभार, आदरणीय गिरिराज भाईजी. "
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी

२१२२       २१२२        २१२२   औपचारिकता न खा जाये सरलता********************************ये अँधेरा,…See More
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा दशम्. . . . . गुरु

दोहा दशम्. . . . गुरुशिक्षक शिल्पी आज को, देता नव आकार । नव युग के हर स्वप्न को, करता वह साकार…See More
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल आपको अच्छी लगी यह मेरे लिए हर्ष का विषय है। स्नेह के लिए…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service