२१२२/१२१२/२२ (११२)
वह’म है वो नज़र नहीं रखता
आसमां क्या ख़बर नहीं रखता.
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वो मकीं सब के दिल में रहता है
आप कहते हैं घर नहीं रखता.
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है मुअय्यन हर एक काम उसका
कुछ इधर का उधर नहीं रखता.
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अपने दर पे बुलाना चाहे अगर
तब खुला कोई दर नहीं रखता.
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ख़ामुशी अर्श तक पहुँचती है
लफ्ज़ ऐसा असर नहीं रखता.
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तेरी हर साँस साँस मुखबिर है
तू ही ख़ुद पे नज़र नहीं रखता.
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दिल ही दिल में हमेशा घुटता है
क्यूँ कोई चारगर नहीं रखता.
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मंज़िलें आँखों में बसाई क्यूँ
पाँव में जब सफ़र नहीं रखता
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दिल ये कहता है बोल दूँ उसको
ज़ह्न अगरचे जिगर नहीं रखता.
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निलेश 'नूर'
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
शुक्रिया आ. वीनस जी. आपने बहुत महीन बाते समझाई है जिन्हें मैं फिर से कहने की कोशिश करता हूँ.
आसमां के सम्बन्ध में मैं ग़ालिब का एक शेर quote करना चाहता हूँ
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हम कहाँ के दाना थे किस हुनर में यकता थे
बे-सबब हुआ "ग़ालिब" दुश्मन आसमां अपना.
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एक शेर और देखें
आसमाँ की फ़िक्र क्या, आसमाँ ख़फ़ा सही
आप ये बताइये, आप तो ख़फ़ा नहीं
शमीम करहानी (इसे जगजीत साहब ने गाया है)
इन दोनों स्थानों पर आसमान को ईश्वर का बिम्ब माना गया है कि ईश्वर ख़फ़ा सही, महबूब ख़फ़ा न हो या ईश्वर ही दुश्मन बन गया है जैसा भाव स्पष्ट है.
शजर समर वाला शेर सचमुच कोई नयापन लिए हुए नहीं है ये बात 100% सही मानता हूँ मैं भी लेकिन सोचते सोचते कलम न रुके फ्लो बना रहे -शायद उस रौ में कह गया मैं..उसे हटा लेता हूँ.
जहाँ तक साँस साँस का प्रश्न है ये सिर्फ प्रभावोत्पादक है ..ज़ोर डालने के लिए है
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मुजरिम है सोच-सोच, गुनहगार साँस-साँस,
कोई सफाई दे तो कहाँ तक सफाई दे.
कृष्ण बिहारी "नूर"
दिल ही दिल में घुटना ठीक वैसा है जैसा मन ही मन में चाहना ..
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दिल ही दिल में ले लिया दिल मेहरबानी आप की
दिल ये इस काबिल कहा हैं, कदरदानी आप की.
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वो ख़ुदा सब....हो फिर से कहने का प्रयत्न करता हूँ
.और ज़ह्न है कि....में भीषण त्रुटी हो गयी है.. कान पकड कर माफ़ी चाहता हूँ.
इसे भी फिर से कहता हूँ.
आपके और मंच के मार्गदर्शन से यहाँ तक पहुँचा हूँ. मार्गदर्शन करते रहिये.
सादर
वह’म है वो नज़र नहीं रखता
आसमां क्या ख़बर नहीं रखता. बढ़िया मतला है
/ आजादी के पहले जब अंग्रेजों के खिलाफ बात कहनी होती थी तो दुश्मन के लिये आसमाँ का बिम्ब प्रस्तुत किया जाता था
वक्त आने दे बता देंगे तुझे ए आसमां...
मेरी जानकारी में तब से अब तक आसमां बिम्ब को दुश्मन के लिए ही प्रस्तुत किया जाता है
आपके अपने एक कमेन्ट में कहा है की इस शेर में आपने आसमां को ईश्वर का बिम्ब माना है तो मुझे ये आपको बताना था,,,
बाकी आप देख लें, जैसा उचित समझें .... /
वो ख़ुदा सब के दिल में रहता है
कौन कहता है घर नहीं रखता......... बढ़िया शेर है ... वो शब्द भर्ती का है
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है मुअय्यन हर एक काम उसका
कुछ इधर का उधर नहीं रखता............ बहुत खूब
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अपने दर पे बुलाना चाहे अगर
तब खुला कोई दर नहीं रखता............. हासिले ग़ज़ल
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कौन होगा शजर सा दरियादिल
ख़ुद की ख़ातिर समर नहीं रखता........... कहन में नयापन नहीं है
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तेरी हर साँस साँस मुखबिर है
तू ही ख़ुद पे नज़र नहीं रखता. ...........बढ़िया शेर है मगर तेरी हर साँस के बाद अगले शब्द सांस का क्या औचित्य है
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दिल ही दिल में हमेशा घुटता है
क्यूँ कोई चारगर नहीं रखता..............अन्दर ही अन्दर घुटना तो सुना है दिल ही दिल में घुटना भी इस्तेमाल होता है क्या
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मंज़िलें आँखों में बसाई क्यूँ
पाँव में जब सफ़र नहीं रखता............ बढ़िया है
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दिल ये कहता है बोल दूँ उसको
ज़ह्न है कि जिगर नहीं रखता. .............शेर तो ये भी बढ़िया है ... आपने कि शब्द को २ मात्रा में इस्तेमाल कर लिया है जो कि अनुचित है
मंज़िलें आँखों में बसाई क्यूँ
पाँव में जब सफ़र नहीं रखता -- लाजवाब बात कही , गज़ल भी खूब कही है , बधाई ॥
आदरणीय नीलेश जी बेहतरीन ग़ज़ल हुई है. शेर दर शेर दाद कुबूल फरमाए.
शुक्रिया आ. जान गोरखपुरी साहब
अपने दर पे बुलाना चाहे अगर
तब खुला कोई दर नहीं रखता. वाह वाह क्या कहने!
मंज़िलें आँखों में बसाई क्यूँ
पाँव में जब सफ़र नहीं रखता या सफ़र में पाँव नही रखता// पाँव में सफ़र रखना सही नही लग रहा!
दिल ये कहता है बोल दूँ उसको
ज़ह्न है कि जिगर नहीं रखता. वाह वाह!
बहुत सुन्दर गज़ल हुयी है आदरणीय,हार्दिक बधाई!
शुक्रिया आ. डॉ विजय शंकर सर
शुक्रिया आ. मनोज जी.
शुद्ध शब्द चारागर ही है लेकिन बह्र के तकाज़े कई बार चारगर पढने पर मजबूर करते हैं (वैसे ये मेरी गलती है कि उसे चारागर न लिख कर चारगर लिख गया)
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वो कहाँ साथ सुलाते हैं मुझे
ख्व़ाब क्या क्या नज़र आते हैं मुझे.
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मैं तो उस ज़ुल्फ़ की बू पर ग़श हूँ
चारागर मुश्क सुँघाते हैं मुझे.
२१२२/११२२/२२ (११२)
(मोमिन खान मोमिन)
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वह’म है वो नज़र नहीं रखता
आसमां क्या ख़बर नहीं रखता. बस ये सन्देश देने की कोशिश है कि ईश्वर सबपे नज़र रखता है, सारे कर्मों की खबर रखता है
सादर
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