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ये मय भी कडवी है सच की तरह

१२१  २२ १२१  २२

यूं कतरा कतरा शराब पीकर

हैं जिन्दा अब तक जनाब पीकर

सवाल मुश्किल थे जिन्दगी के

मगर दिए सब जवाब पीकर

ये मय लगी  कडवी सच के जैसी 

न कह सका मैं  ख़राब पीकर

पहाड़ सीने पे दर्दो गम के

नहीं रहा कोई दवाब पीकर

जिन्हें मयस्सर न रोटियाँ थीं 

वो बन गए थे  नवाब पीकर

था खौफ आँखों में डूबने का

हटाया रुख से नकाब पीकर

बिना पिए ही था जो क़यामत

मचल उठा वो शबाब पीकर

मौलिक व अप्रकाशित 

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Comment

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Comment by Dr Ashutosh Mishra on May 13, 2015 at 5:55pm

आदरणीय मोहन जी ..आपकी प्रतिक्रिया बहुत मजेदार लगी उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद सादर 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on May 13, 2015 at 5:54pm

आदरणीय मिथिलेश जी ..रचना पर आपकी प्रतिक्रिया के लिए तहे दिल धन्यवाद सादर 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on May 13, 2015 at 5:48pm

आदरणीय जीतेन्द्र जी ,..आपके हौसला बढाते शब्दों के लिए ह्रदय से धन्यवाद सादर 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on May 13, 2015 at 5:47pm

आदरणीय विजय सर ..रचना पर आपकी  उत्साहित करती प्रतिक्रिया के लिए तहे दिल धन्यवाद सादर 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on May 13, 2015 at 5:45pm

आदरणीय समर कबीर जी ..रचना पर आपकी उत्साहित करती प्रतिक्रिया के लिए तहे दिल धन्यवाद सादर ..आदरणीय सर ज़िन्दगी में दर्द और गम कभी पहाड़ के जैसे हो जाती है ,,किसी पहाड़ के नीचे का दवाब वास्तविक होता है लेकिन दर्द और गम भावनात्मक है उससे महसूस किये जाने वाला दवाब आभासित होता है जिस तरह एनाल्ज़ेसिक से दर्द ख़त्म नही होता है बल्कि दर्द को महसूस नहीं होने देता ..उसी तरह शराब ऐसे हर आभासित दवाब को हटा देती है क्योंकि प्रकृति द्वारा कुछ भी ऐसा जिसे हम अपने अनुसार अनुकूल और प्रतिकूल मानते हैं और दुःख और गम जैसा पर्याय देते हैं पूरी तरह से काल्पनिक होता है ..बस सर कुछ ऐसा ही सोचकर मैंने ये लिखा है लेकिन आपने प्रश्न उठाया है तो इसमें कोई न कोई कमी जरूर होगी ..आप के मशविरे का इंतज़ार रहेगा सादर 

Comment by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on May 13, 2015 at 7:29am

बढ़िया ...मगर हर बात पीकर ....यानि की पीने की लत लग गई ...सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on May 13, 2015 at 6:16am
आदरणीय आशुतोष जी बहुत उम्दा ग़ज़ल हुई है शेर दर शेर दाद कुबूल फरमाएं।
Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on May 12, 2015 at 11:57pm

बहुत सुंदर गजल कही आपने,आदरणीय डा.आशुतोष जी. सभी शेर बहुत अच्छे लगे. दिली बधाई आपको

Comment by Dr. Vijai Shanker on May 12, 2015 at 6:24pm
ये मय लगी कडवी सच के जैसी
न कह सका मैं ख़राब पीकर
बहुत खूब ग़ज़ल कही है, आदरणीय डॉo आशुतोष मिश्रा जी , बधाई, सादर।
Comment by Samar kabeer on May 12, 2015 at 3:19pm
जनाब डॉ आशुतोष मिश्रा जी ,आदाब,बहुत ही ख़ूबसूरत ग़ज़ल कही है आपने ,शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फ़रमाऐं।

"पहाड़ सीने पे दर्दो गम के
नहीं रहा कोई दवाब पीकर"

यह शैर मेरी समझ में नहीं आया ,कृपया समझाने का कष्ट करें ।

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