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कभी इक तवील सी राह में लगी धूप सी मुझे ज़िन्दगी
कभी शबनमी सी मिली सहर जिसे देख के मिली ताज़गी
कभी शब मिली सजी चाँदनी , रहा चाँद का भी उजास, पर
कभी एक बेवा की ज़िन्दगी सी रही है रात में सादगी
कभी हसरतों के महल बने, कभी ख़ंडरों का था सिलसिला
कभी मंज़िलें मिली सामने , कभी चार सू मिली ख़स्तगी
कभी यार भी लगे गैर से , कभी दुश्मनों से वफ़ा मिली
कभी रोशनी चुभी बे क़दर , तो दवा बनी मेरी तीरगी
कभी दुश्मनों की तरह मुझे, मेरे रास्ते गड़े खार बन
हुये मीत जब वही रास्ते , वहीं मखमली सी छुवन जगी
कभी पी लिया मै ने ज़ह्र भी , कभी आबे जम भी हटा दिया
कभी ज़िन्दगी लगी ग़ैर सी , कभी मौत मुझको सगी लगी
मै भी जी रहा हूँ ये कह सकूँ , मेरी कोशिशें तो रहीं मगर
कभी भूख में न थीं रोटियाँ , मिला आब जब न थी तिश्नगी
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मौलिक एवँ अप्रकाशित
Comment
इस खूबसूरत ग़ज़ल में जिस तरह से कण्ट्रास्ट के सहारे रोचकता पैदा करने का प्रयास हुआ है वह मुग्ध तो कर रहा है, आदरणीय गिरिराजभाईजी, आपकी गहन सोच को भी रेखांकित करता है. इस अवश्य पठनीय ग़ज़ल पर मैं इतने विलम्ब से आ रहा हूँ यह मेरी अनायास विवशता को और भी बहुगुणित कर रहा है.
सुधी पाठकों के सहयोग से अन्यान्य भाषायी त्रुटियों के निकल जाने से यह ग़ज़ल और निखर आयी है.
इस प्रस्तुति के लिए दिल से दाद कह रहा हूँ.
शुभ-शुभ
आदरणीय मिथिलेश भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिये आपका बहुत बहुत आभार ॥
आदरणीय गिरिराज सर बेहतरीन ग़ज़ल हुई है दिल से दाद कुबूल फरमाए.
आदरणीय जितेंद्र भाई , सराहना और उत्साह वर्धन के लिये बहुत बहुत आभार ॥
आदरणीय मोहन सेठी भाई , उत्साह वर्धन के लिये आपका बहुत बहुत आभार ॥ आदरणीय मै कभी किसी की बात को अन्यथा नहीं लेता , मुझे बस सीखने से मतलब है , कौन सिखाता है इससे नहीं । जिसे भी लगता है कि मेरी रचना में कुछ गलती है और वो सही क्या है जानता है उसका मैं दिल से स्वागत करता हूँ ॥ आपका आभार सराहना के लिये ॥
आदरणीय सुशील सरन भाई , हौसला अफज़ाई के लिये आपका तहेदिल से शुक्रिया ॥
बहुत सुंदर गजल ,आदरणीय गिरिराज जी. हर एक शे'र बहुत अच्छा लगा. दिली बधाइयाँ लीजियेगा
आदरणीय गिरिराज भंडारी जी खूबसूरत ग़ज़ल के लिये बधाई स्वीकार करें .....सादर (नीलेश जी के डर से मैं ग़ज़ल लिखता ही नहीं क्यों की अतुकांत में तो सब चलता है ...मज़ाक कर रहा हूँ अन्यथा ना लें )
कभी इक तवील सी राह में लगी धूप सी मुझे ज़िन्दगी
कभी शबनमी सी मिली सहर जिसे देख के मिली ताज़गी
कभी शब मिली सजी चाँदनी , रहा चाँद का भी उजास, पर
कभी एक बेवा की ज़िन्दगी सी रही है रात में सादगी
वाह गिरिराज भंडारी जी वाह क्या बात है … बहुत ही गहन अभिव्यक्ति प्रस्तुत हुई है आपकी इस ग़ज़ल में … हार्दिक बधाई स्वीकार करें सर
आदरणीय नीलेश भाई , // सुझाव देने का दु: साहस किया है. आशा है आप अन्यथा न लेंगे //
मै यहाँ के हर सदस्य को जिसमे आप भी बखूबी शामिल हैं अपना शुभ चिंतक मानता हूँ और ये भी मानता होँ कि मेरा मानना सच है ॥ आप बेकार ही संकोच मे पड़े हैं , आपकी सलाहों का हमेशा स्वागत है ॥
मै अभी सुधार कर लेता हूँ , आपका बहुत शुक्रिया॥
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