For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

गज़ल -( फिल बदीह ) - हौसले जो दे रहे थे वो थके - हारे मिले

दिया गया मिसरा -"चिलचिलाती धूप में जब मोम से रिश्ते मिले।"

-----------------------------------------------------------------------

2122   2122    2122   212

 

हौसला जो दे रहे थे वो थके - हारे मिले

ताड़ सी ऊँचाइयों वाले बहुत बौने मिले

 

आस्था को व्यर्थ की बातें कहा करते थे जो

जब कठिन आया समय , वो दैर में झुकते मिले 

 

जिनका दावा रहबरी का था उन्ही के पैर क्यूँ

मोड़ पर फिर लड़खड़ाये , दम ब दम रुकते मिले

 

क्यूँ यक़ीं कर लूँ किसी पे, तुम सा अपना भी अगर

उस्तरा लाये छिपा के , पीठ पर साधे मिले  

 

आज उजली धूप के कानून के रक्षक हैं जो

रात की तारीक़ियों में,  आइना तोड़े मिले

 

लाठियाँ जिनकी चलीं थीं नातुवाँ की पीठ पर

गिड़गिड़ाते, मंत्रियों से हाथ भी जोड़े मिले

 

जिनपे हमको था यक़ीं , हैं रोशनी के हम सफर

वो गड़े पत्थर नुमा अब राह के रोड़े मिले

 

बीच उनके हम कहाँ मिल्लत कराते , जो सभी

दरमियाँ खोदे हैं खाई , हर क़सम तोड़े मिले

 

------------------------------------------------- 

मौलिक एवँ अप्रकाशित 

 

Views: 938

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by shree suneel on June 9, 2015 at 9:45am
जिनका दावा रहबरी का था उन्ही के पैर क्यूँ
मोड़ में फिर लड़खड़ाये , दम ब दम रुकते मिले.. . व्वाहह.. बढ़िया..
मतला भी ख़ूब है आदरणीय. बधाई आपको.
Comment by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on June 9, 2015 at 7:41am

आदरणीय गिरिराज भंडारी जी ....वाह बहुत खूब कहा ...

हौसले जो दे रहे थे वो थके - हारे मिले

ताड़ सी ऊँचाइयाँ वाले बहुत बौने मिले


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 9, 2015 at 6:38am

आदरणीय विनय कुमार भाई , उत्साह वर्धन के लिये आपका आभारी हूँ ।

Comment by विनय कुमार on June 8, 2015 at 8:45pm

// क्यूँ यक़ीं कर लूँ किसी पे, आपसे अपने अगर
उस्तरा लाये छिपा के , पीठ पर साधे मिले // , बहुत खूबसूरत , बधाई इस प्रतुति के लिए आदरणीय..


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 8, 2015 at 2:50pm

आदरणीय महर्षि भाई , सराहना के लिये आपका आपका बहुत आभार ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 8, 2015 at 2:49pm

आदरणीय बड़े भाई गोपाल जी , जैसे तरही मुशयरे में एक मिसरा दिया जाता है , वैसे ही फिल बदीह मे भी मिसरा दिया जाता  है , बस फर्क ये है कि तरही मुशायरे में महीने भर  पहले मिसरा दे देते हैं और फिल बदीह मे उसी समय देते हैं और उसी समय गज़ल कह के पोस्ट कर दिया जाता है ,  बस एक दो घंटे का समय रहता है ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 8, 2015 at 2:45pm

आदरनीय समर भाई , आपने गज़ल पास कर दी तो मन को तसली हुई , सराहना के लिये आपका आभर । आपने सही कहा , काव्योदय मे रोज 7 - 7.30 बजे मिसरा दिया जाता है , और 11 तक गज़ल कहनी होती है , अभी यही मस्क जारी है ॥

Comment by maharshi tripathi on June 8, 2015 at 2:36pm
har..misra kabile tareef hai..bas waah waah hi nikal rhi...aa. giriraj sir ji.....bahut bahut badhai aapko..
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 8, 2015 at 2:24pm

आ० अनुज

यह फिल बदीह क्या बला है , ज़रा समझायें .सादर .  

Comment by Samar kabeer on June 8, 2015 at 2:22pm
जनाब गिरिराज भंडारी जी,आदाब,एक और अच्छी ग़ज़ल से नवाज़ा है आपने मंच को ,मेरी दुआ है कि ये सिलसिला इसी तरह चलता रहे,शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फ़रमाऐं ।
फ़िल बदीह ग़ज़ल तो मिसरा मिलते ही फ़ौरन कहना पड़ती है ,ये आपकी दूसरी फ़िल बदीह ग़ज़ल है ,इसके लिये अलग से मुबारकबाद क़ुबूल फ़रमाऐं ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
yesterday
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Friday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Friday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
Thursday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service