" साहब , ई सब खाने वाला समान को जलवा देंगे आपलोग ", गोदाम में रखते हुए जोखन ने पूछा |
" हाँ , इनकी एक्सपायरी हो गयी है और ये नुक़्सान पहुँचा सकते हैं लोगों को , इसलिए इनको जलाना पड़ेगा "|
" हमको दे दो साहब , जब भूख प्यास हम लोगों का कुछ नहीं बिगाड़ पाती है तो ये क्या नुक़्सान करेगा | बच्चे दुआ देंगे आपको "|
एक बार उसने जोखन की आँखों में देखा , फिर मन में सोचा " मैं चांस नहीं ले सकता | कुछ हो गया तो ?
थोड़ी देर में सारा सामान जल रहा था और जोखन की आँखों में कुछ देर पहले जले उम्मीदों के दिए बुझ गए थे |
मौलिक एवम अप्रकाशित
Comment
बहुत बहुत आभार आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी , आपके मार्गदर्शन की जरुरत रहती है । सादर ..
इस लघुकथा के होने पर मैं आपको हृदयतल बधाई कह रहा हूँ, आदरणीय ..
शुभ-शुभ
बहुत बहुत आभार आदरणीय मिथलेश वामनकर जी , आपकी अनुपस्थिति खल रही थी आजकल.
एक सत्य को अभिव्यक्त करती प्रभावकारी और सफल लघुकथा
हार्दिक बधाई आदरणीय विनय जी
बहुत बहुत आभार आदरणीय ओम प्रकाश जी .
बहुत बहुत आभार आदरणीय हरी प्रकाश दुबे जी .
बहुत बहुत आभार आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी.
आ. विनय सर सुन्दर मार्मिक लघुकथा , हार्दिक बधाई ! सादर
बहुत बढ़िया , आदरनीय
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