“मेरे ग्रैंड फादर राय बहादुर थे” ..... उस व्यक्ति ने बुद्धिजीवियों की सभा में अकड़ के साथ यह बात कही । सभा के आयोजक ने भी गर्व से अपना सर ऊंचा कर लिया । वहाँ उपस्थित लोग जो उस व्यक्ति को मिल रहे विशेष सम्मान, तवज्जो , उसके समृद्ध पहनावे एवं उसकी मंहगी गाड़ी से पहले ही नतमस्तक हो रहे थे, यह सुनकर थोड़े और विनीत भाव दिखलाने लगे। उसे मंच पर सबसे ऊंची कुर्सी दी गयी । सब उसके साथ एक फोटो खिचवा लेना चाहते थे । महेश सभा में सबसे पीछे की कुर्सी पर उपेक्षित सा बैठा अपने मलिन कपड़ों को देख रहा था। वह ज़ोर से चिल्ला चिल्ला कर कहना चाह रहा था कि उसके दादा जी एक स्वतन्त्रता सेनानी थे , जिनकी सारी संपत्ति अंग्रेज़ो ने जब्त कर ली थी .... पर वह चुप रहा ....
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जिसका रुतबा उसकी ही पूछ ये हकीक़त है इस देश की जो शुरू से कायम रही है और रहेगी मँहगी कार मंहंगा पहनावा देखते ही लोग उसे ऊँची कुर्सी पर बिठाने लगते हैं मानव के मनोविज्ञान को बखूबी लघु कथा में चित्रित किया है आपने नीरज जी बहुत- बहुत बधाई.
आदरणीय मिथिलेश जी आपके इस प्रोत्साहन एवं सराहना हेतू हार्दिक धन्यवाद ....
आपका हार्दिक आभार आदरणीय विनय जी ..
आदरणीय नीरज जी, आजादी के इतने सालों बाद भी ये विडम्बना मौजूद है जिसे आपने कसावटी कथानक में लघुकथा के रूप में प्रस्तुत किया है. आपने एक बेहतरीन प्रसंग उठाया है और बड़े ही सधे हुए ढंग से प्रसंग को शाब्दिक किया है. इस गहन प्रस्तुति के लिए बधाई और साधुवाद
आपकी पहली लघुकथा पढ़ी मैंने , बढ़िया लिखा है आपने । धन का ही सम्मान है आज , चाहे जैसे कमाया हो , बधाई इस रचना के लिए.
आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव साहब ..... अगर आज यह गौरव की बात होती तो कोई यह न कहता कि मेरे ग्रैंड फादर "राय बहादुर" थे ........................क्योंकि राय बहादुर कोई बहादुरी के काम का इनाम तो था नहीं ..... अंग्रेजों से वफा एवं देश से गद्दारी करने वालों को ही ऐसी उपाधियाँ मिलती थी .... और फिर महेश को सबसे पीछे की सीट पर क्यों बैठना पड़ा, सब लोग उस अमीर व्यक्ति के साथ फोटो क्यों खिचवाना चाहते थे ................... महेश इसीलिए शायद चुप रहा कि जिस देश में पढे लिखे बुद्धिजीवि भी धन की चकाचौंध में इतिहास भुला बैठते हैं वहाँ उसके बोलने चिल्लाने का क्या असर होता ....
आदरणीय श्याम नारायण वर्मा जी आपका हार्दिक आभार
एक प्रश्न यह उठता है कि वह चुप क्यों रहा . आजाद भारत में तो यह गौरव की बात थी . सादर .
सुन्दर लघु कथा के लिये बधाई । |
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