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पलक झपकते ही वो सब हो गया जो उसकी कल्पना में भी नही था। तेज गति से चलते टैम्पो में पलटते ही आग लग गयी और रोड़ पर भगदड़ मच गयी। जलती आग की ओट में घिरे उस नन्हे बच्चे को देख एकबारगी उसकी सांसे भी थम गयी।वो निशक्त सा हो गया। लेकिन बच्चे को जीवन मृत्यु के बीच झूलते देख उसने अपने अंदर की सारी शक्ति को समेटा और आग में कूद पड़ा।......
शहर भर में उसकी हिम्मत की चर्चा होने लगी। हर कोई जानना चाहता था उसकी हिम्मत, उसके जज्बे का राज।
"क्या बताऊं मैं?" रो पड़ा फूट फूट कर वो। "मेरा दस बरस का बेटा था मेरी हिम्मत! जिसे... जिसे दो बरस पहले जलती आग में जलता हुआ देखता रहा मै! हाँ मैं, एक कायर इंसान।"
'विरेन्दर वीर मेहता' (मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on August 21, 2017 at 9:49pm

मार्मिक विषय पर आपने कलम चलायी है आदरणीय वीर जी | हार्दिक बधाई आपको इस कथा के लिए |


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 9, 2015 at 2:57pm

मेरा सुझाव आपको रुचिकर लगा, यह मेरे लिए आश्वस्तिकारी है. मेरे कहे को अनुमोदित करने केलिए हार्दिक धन्यवाद , आदरणीय वीरेन्द्र वीर जी..

Comment by VIRENDER VEER MEHTA on July 9, 2015 at 9:31am

आदरणीय सौरभ पाण्डेय सर कथा  पर आप की समीक्षा  और  प्रतिक्रिया दोनों के लिए दिल से  आभार व्यक्त करता हूँ.

// मेरा  दस बरस  का बेटा .........  //  पंक्तियों में  जो अंतर आपने दिखाया वह इस मेरी कथा को ( जिसे मैं अधिक प्रभावी नहीं बना सका )  सर्व्शेष्ट कैसे बनाया जा  सकता है का सफल उदारहण है

आप का स्नेह बना रहेगा इसी आशा  के साथ आप का अनुज साभार!

 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 9, 2015 at 12:57am

"मेरा दस बरस का बेटा था मेरी हिम्मत! जिसे... जिसे दो बरस पहले जलती आग में जलता हुआ देखता रहा मै! हाँ मैं, एक कायर इंसान।"

"मेरा दस बरस का बेटा है मेरी हिम्मत ! जिसे... जिसे दो बरस पहले मैं ऐसे ही आग में जलता हुआ देखता रह गया था ! हाँऽऽ.. वही कायर हूँ मैं.... "

उपर्युक्त दोनों पंक्तियों को देखिये, आदरणीय.

आपकी इस प्रस्तुति पर हृदय से बधाई.

Comment by Shubhranshu Pandey on July 5, 2015 at 1:31pm

आदरणीय विरेन्द्र जी, 

सुन्दर भाव के साथ कथा कही है. बेटे की मौत के बाद वो अवसादग्रस्त नहीं हुआ बल्कि एक और मौका आने पर उस कायरता को हटा कर आगे बढ़ा. 

कथा के पहले भाग में थोड़ी और कसावट की आवश्यकता है. 

सादर.

Comment by shree suneel on July 4, 2015 at 7:13am
गुज़रे हादसे ने हीं उसे साहसी बना दिया था...
मार्मिक लघु-कथा हुई. बधाई आपको.
Comment by Neeraj Neer on July 3, 2015 at 10:14am

बहुत ही सुंदर लघु कथा 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 3, 2015 at 9:52am

काश ये हिम्मत अपने बेटे के लिए भी  जुटा पाता...बहुत ही हृदय स्पर्शी लघु कथा दिल से बधाई आपको आ० वीर जी   

Comment by Omprakash Kshatriya on July 3, 2015 at 8:58am

आदरणीय VIRENDER VEER MEHTA  जी 

आप की यह लघुकथा अन्दर तक मार करने में सक्षम है .

बधाई .


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on July 3, 2015 at 1:15am

बहुत ही मार्मिक और संवेदनशील लघुकथा हुई है आदरणीय वीरेंदर वीर मेहता जी..... इस सफल लघुकथा पर हार्दिक बधाई स्वीकारें

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