"हैलो रवि, घरवालों ने मेरी शादी तय कर दी है। प्लीज मुझे यहाँ से निकल ले चलो। मैं मंगलसूत्र पहनूंगी तो तुम्हारे हाथों से वरना अपनी जान दे दूंगी।"
"सुजाता, पागल मत बनो। यही तो बढिया मौका है अपने पास....."
"क्या मतलब?"
"अरे, हम अपनी जिंदगी की शुरुआत करेंगे लेकिन तुम्हारी शादी के बाद। तुम दोनों तरफ का माल समेट लेना। शादी के अगले दिन जब तुम मिलनी पर आओगी। मैं तुम्हें अपने साथ ले जाऊँगा। फिर दोनों मिलकर ऐश करेंगे ऐश।"
प्यार में पागल हुई सुजाता ने पूरी प्लानिंग के साथ काम किया और शादी के अगले दिन शाम को सबसे छुपकर रवि के पास बस स्टैंड पर पहुँच गई।
"रवि, मैं तुम्हारे लिए सबकुछ छोड़कर आ गई हूँ।"- सुजाता ने दोनों हाथ फैला दिए लेकिन रवि की नजरें जेवरों वाले बैग पर ही टिकी हुई थीं। यह देखकर सुजाता को अपने अंदर कुछ टूटने का एहसास सा हुआ। एक झटका सा लगा जैसे बरसों की नींद से जाग गई हो। उल्टे पैर वापस मुड़ गई।
"क्या हुआ सुजाता......?"
"रवि, पहला प्यार ही सच्चा और आखिरी नहीं होता है।"
मौलिक और अप्रकाशित
Comment
अच्छी लघुकथा , कोई प्यार का दीवाना , कोई पैसे का | बधाई आदरणीय.
आदरणीय विनोद जी बढ़िया लघुकथा हुई है. इस प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई
आदरणीय विनोद जी,आधुनिक प्यार पर करारा व्यंग!हार्दिक बधाई!
प्यार होता भी है या नही , ख़ैर रिश्ते अब बेमानी हैं .
बढ़िया कथा , सचेत करती हुई , बधाई
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