For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

क़ातिल का मज़हब (लघुकथा )

आज एक महीना होने को आया था और क़लम ऐसी जड़ हुई थी कि आगे बढ़ने का नाम ही ना लेतीI

 ऐसा उसके साथ पहले भी कई बार हुआ था ,कि वो लिखने बैठता और पूरा पूरा दिन गुज़र जाने पर भी काग़ज़ कोरा रह जाता, लेकिन यहाँ बात कुछ और ही थी ,आज खयालात उसके साथ कोई खेल नहीं खेल रहे थे , वो जानता था कि उसे क्या लिखना है ,कहानी के सारे किरदार उसके ज़हन में मौजूद थे I

वो बूढी मज़लूम औरत , वो भोली सी कमसिन बच्ची , वो सफ्फ़ाक आँखों वाला बेरहम क़ातिल , सारे किरदार उसकी आँखों के सामने थे , लेकिन वो किरदार अभी तक बेनाम थे , बे मज़हब थे , वो बूढी औरत जो उसकी कहानी में बस दो लाइनों के बाद क़त्ल हो जाने वाली थी , उस सफ्फ़ाक आँखों वाले कातिल के साथ बैठी बड़े अजीब ढंग से मुस्कुरा रही थी , वो अपना नाम जानना चाहती थी , वो भोली कमसिन बच्ची जो उस क़त्ल की गवाह थी , वो जानना चाहती थी कि क़ातिल का मज़हब क्या है ताकि उस मज़हब से नफ़रत कर सके I

लेकिन वो अभी तक किरदारों को नाम नहीं दे पाया था , क्यूंकि वो इस क़त्ल का इलज़ाम किसी मज़हब पर नहीं डालना चाहता था , उसे तो बस उस क़ातिल के लिए एक नाम चाहिए था, लेकिन वो जानता था कि यहाँ हर मज़हब के अपने नाम और नामों के मज़हब होते हैं , वो सोचता रहा , सोचता रहा , लेकिन उस सफ्फ़ाक आँखों वाले क़ातिल को कोई नाम ना दे सका , और फिर आखिरकार गुस्से में आ कर उसने खून कर दिया अपने उस सफ्फ़ाक क़ातिल के किरदार का, उस बूढी औरत और कमसिन बच्ची ने रात भर जश्न मनाया उस किरदार की लाश पर , वो लाश जो अभी तक यूँ ही पड़ी थी , वो नहीं जानता था कि उस लाश का क्या करना है , उसे जलाना है या दफ़नाना है

'क्यूंकि वो नहीं जानता था कि क़ातिल का मज़हब क्या होता है '

 -सालिम शेख

      ''मौलिक एवं अप्राकाशित ''

Views: 1327

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by saalim sheikh on July 28, 2015 at 6:19pm

आदरणीय  डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव सर , शुक्रिया , जी मैं बिल्कुल इस बात का ध्यान रखूँगा 

Comment by saalim sheikh on July 28, 2015 at 6:18pm

 Prashant Priyadarshi भाई , बेहद शुक्रिया हौसला अफज़ाई का 

Comment by kanta roy on July 26, 2015 at 10:36am
एक बडा चिंतन ऊभर कर आया है आपके इस रचना में कि बिना मजहबी नाम मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है । बहुत ही सुंदर और अप्रतीम प्रयास हुआ है लेखन का । वो लडकी का नाम जानने को इच्छुक होना ही कितना संकेत दे गया है ! उसे नाम से मजहब का पता लगाना था नफ़रत करने के लिए । यानि की हम अपराधी से नही बल्कि उसके मजहब से घृणा कर सके !!!!!! इतनी संवेदनशील बातों का जिक्र इतने सहजता से कर जाना यह काबिले तारीफ़ है । बधाई आपको आदरणीय सलीम शेख जी इस सुंदरतम रचना के लिए ।
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on July 25, 2015 at 9:40pm

लघु कथा तो यह नहीं है पर आपका शिल्प बिलकुल नया आर सांकेतिक है . इस में यह ध्यान रखना आवश्यक  है कि  पाठक कही उलझ न जाये

Comment by Prashant Priyadarshi on July 24, 2015 at 9:40pm

सालिम शेख भाई, उत्तम रचना है, आपकी कल्पना एवं लेखन प्रतिभा वास्तव में सराहनीय है. मैंने तो पहली बार आपको पढ़ा है लेकिन काफ़ी प्रभावी लगी आपकी कृति.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 24, 2015 at 12:11am

भाई सालिम शेख, आपकी यदि यह पहली गद्य प्रस्तुति है तो मैं आपको फिर से तहेदिल से दाद और बधाई दे रहा हूँ. भइया, ऐसी कोशिश बनी रहे और आप इस मंच पर कई-कई विधाओं पर उपलब्ध आलेखों और समूहों का खूब फ़ायदा उठायें.
आपकी सार्थक रचनाओं का इंतज़ार रहेगा.

Comment by saalim sheikh on July 24, 2015 at 12:08am

बहुत शुक्रिया आदरणीय  maharshi tripathi जी 

Comment by saalim sheikh on July 24, 2015 at 12:07am

बेहद शुक्रिया आदरणीय vinaya kumar singh जी 

Comment by saalim sheikh on July 24, 2015 at 12:06am

आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी , आपका बेहद शुक्रिया 

Comment by saalim sheikh on July 24, 2015 at 12:05am

आदरणीय शिज्जु "शकूर" सर , बेहद शुक्रिया 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"सभी अशआर बहुत अच्छे हुए हैं बहुत सुंदर ग़ज़ल "
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

पूनम की रात (दोहा गज़ल )

धरा चाँद गल मिल रहे, करते मन की बात।जगमग है कण-कण यहाँ, शुभ पूनम की रात।जर्रा - जर्रा नींद में ,…See More
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी

वहाँ  मैं भी  पहुंचा  मगर  धीरे धीरे १२२    १२२     १२२     १२२    बढी भी तो थी ये उमर धीरे…See More
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , उत्साह वर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार "
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"आ.प्राची बहन, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार।"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"कहें अमावस पूर्णिमा, जिनके मन में प्रीत लिए प्रेम की चाँदनी, लिखें मिलन के गीतपूनम की रातें…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"दोहावली***आती पूनम रात जब, मन में उमगे प्रीतकरे पूर्ण तब चाँदनी, मधुर मिलन की रीत।१।*चाहे…"
Saturday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"स्वागतम 🎉"
Friday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

१२२/१२२/१२२/१२२ * कथा निर्धनों की कभी बोल सिक्के सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के।१। * महल…See More
Jul 10
Admin posted discussions
Jul 8
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Jul 7
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
Jul 7

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service