खुद को देशभक्त समझने वाले राम ने रहीम से कहा, “तुमने देशद्रोह किया है।”
रहीम ने पूछा, “देशद्रोह का मतलब?”
राम ने शब्दकोश खोला, देशद्रोह का अर्थ देखा और बोला, “देश या देशवासियों को क्षति पहुँचाने वाला कोई भी कार्य।”
बोलने के साथ ही राम के चेहरे का आक्रोश गायब हो गया और उसके चेहरे पर ऐसे भाव आए जैसे किसी ने उसे बहुत बड़ा धोखा दिया हो। न चाहते हुए भी उसके मुँह से निकल गया, “हे भगवान! इसके अनुसार तो हम सब....।”
रहीम के होंठों पर मुस्कान तैर गई।
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(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Comment
ब्राह्मणवाद मेरे संस्कार है और मैं मेरे संस्कारो को नीलाम नहीं होने दूंगा, चाहे मुझे मार ही क्यों न दे, अगर कोई अपनी संस्कृति के साथ हो रहे अपमान को सहन करते है, तो उस से घटिया और गिरा हुआ कोई और नहीं हो सकता, आप उन लेखको में से है, जो गलियो को भी अपना नसीब मानते है, और उस को कमेंट्स में गिनती करते है, आप को कोई फर्क नहीं पड़ता की आप राम को गलत बता रहे है या रहीम को लेकिन जो इन के अनुयायी है उन को जरूर फर्क पड़ता है, इस से ज्यादा कुछ नहीं कहुगा, क्योकि कहते है न "विनाश काले विपरीत बुद्धि"
आदरणीय ओझा जी, आप ब्राह्मणवाद से बुरी तरह ग्रस्त हैं। जिस दिन आपको ब्राह्मणवाद से मुक्ति मिलेगी आप इस लघुकथा को ज़्यादा अच्छी तरह समझ सकेंगे। बाकी मुझे इस बात से कोई एतराज नहीं है कि इस्लाम में हजार बुराइयाँ हैं। आप अपनी बातों को लघुकथा / कहानी / कविता के माध्यम से मंच के सामने रख सकते हैं। बकवास करने से कोई बुराई नहीं मिटती। अगर आप के पास ऐसे शब्द नहीं हैं जिनके माध्यम से आप अपनी बात को इन तरीकों से कह सकें तो दूसरों की लघुकथा / कहानी / कविता पढ़िये और दुनिया को कोसते रहिए। वैसे भी आप जिन बातों पर यकीन करते हैं वो शानदार कहानियाँ ही हैं।
Mr. धर्मेन्द्र कुमार आप ने बहुत ही घटिया और निचे इस्तर की कथा लिखी है, सेकुलर का मतलब धार्मिक न होना है न की अपने धर्म को निचा दिखा कर दुसरो का प्रचार करना, अपने माँ बाप को गालिया देकर दूसरे लोगो की सेवा करके आप क्या सोचते है, की में बहुत बड़ा समाजसेवी हु, जिस रहीम की आप बात कर रहे है उसे धर्म में जब कोई ससुर अपनी बहु के साथ बलात्कार करता है तो पता है क्या फतवे निकलते है, में बताता हु, उस औरत को उस बलात्कारी की बीबी घोषित कर दी जाती है और उस औरत के पति को उस का बेटा घोषित कर दिया जाता है, उस के खिलाफः क्यों नहीं मुह खुलता है, दस दस शादियों के खिलाफः बीस बीस बच्चे पैदा करने के खिलाफः मुह क्यों बंद हो जाता है, आजाद भारत में 90% हिन्दू थे, आज 78% और वो निरंतर बढ़ रहे हैI क्यों, कभी सोचा है, इस बढ़ती जनसँख्या के खिलाफः , आंतकवाद के खिलाफः, धार्मिक अंधविस्वास के खिलाफः, वो लोग कभी नहीं बोलते, क्योकि वो अपने धर्म का अपमान करना नहीं चाहते, और अपने यहाँ तो कतारे लगी हुई है, वो कहते है ना "हमें तो अपनों ने लूटा, गैरो में कहा दम था" आप को एक सलाह देना चाहता हु, कुछ भी ऐसी हरकत करने से पहले भारत का इतिहास पढ़ लेना, तो शायद आप को पता चले की हमारे पूर्वजो के साथ क्या हुआ थाI
//आदरणीय पाण्डेय जी, आदरणीय मिश्रा जी एवं आदरणीय त्रिपाठी जी को राम / रहीम शब्द पर आपत्ति हुई, तो मैं समझता हूँ कि लघुकथा आपके पूर्वाग्रहों को उभारकर मंच के सामने लाने में पूरी तरह सफल रही है।//
कृपया मंच को साहित्यिक ही रहने दें आदरणीय, लोगों के ग्रहों की ग्राह्यता पर आपके विचार भी किसी अन्य ग्रह से आयातित नहीं है, पूरा नाम देने के बदले केवल सरनेम दे कर आपने अपनी विवशता और दूसरों पर आरोपित अपने पूर्वाग्रह का ही परिचय दिया है.
//आनन्द आ गया। लघुकथा अपने उद्देश्य में पूरी तरह सफल है। राम / रहीम ही तो इस लघुकथा की जान हैं इनके बगैर तो इस लघुकथा का व्यंग्य व्यर्थ है।//
किसी को कुरेद कर उसकी तड़प पर आनन्द का अनुभव करने वाले को क्या कहा जाता है, ये हम आप सभी जानते हैं. कम से एक साहित्यकार से इस तरह के आचरण और ऐसे कथन की अपेक्षा नहीं होती है. साहित्यकार और किसी पार्टी के अंधकार्यकर्ता में बहुत अन्तर होता है. जितना कबीर आदरणीय धर्मेन्द्रजी आपमें पैदा हो गया है, उससे कम कबीर हम सब में भी नहीं है. न अधिक तो बराबर तो अवश्य होगा. लेकिन कबीरपन जैसे संतुलन और जैसी ताकत की अपेक्षा करता है, आपमें वह जागे. आप ही क्यों हमसब में जागे.
आगे क्या कहूँ ? आपका पोस्ट था. विधा लघुकथा थी. इसलिए टिप्पणी कर दिया. अतः टिप्पणियों की संख्या को पोस्ट की सफलता मत मान लीजियेगा.
सादर
मैं आ० सौरभ सर के वक्तव्य और अपने स्पस्टीकरण के बाद और कुछ इस कथा पर कहना नही चाहता था..पर प्रतिभा जी की टिप्पणी ने फ़िर से मन को कचोट दिया है और मजबूरन अपनी बात यहाँ रख रहा हूँ. अभी हाल ही में whatsaap पर एक फोटो वायरल हुयी जिसमें किसी युवक को शिवलिंग के ऊपर पैर रक्खे दिखाया गया है..आखिर इससे क्या सन्देश देने की कोशिश है? यही की आप मूर्तिपूजा नही मानते?? बुतपरस्ती के आप खिलाफ है? ठीक है तो रहिये, हमने क्या मना किया है क्या? हर व्यक्ति आजाद है पर किसी के आराध्य के साथ ऐसा व्यवहार कहाँ तक उचित है? ठीक यही बात हलके स्तर पर इस लघुकथा में भी की गयी है. माना आपने राम/रहीम का प्रयोग धर्मविशेष के चश्में से ऊपर उठ कर एक अच्छा सन्देश देने के लिए किया है. पर इससे यह सत्य नही बदलता कि ये शब्द मात्र नहीं, बल्कि करोड़ों लोगों के लिए पूज्य हैं. आपके लिए ये शब्द बस एक नाम भर है पर दूसरे के लिए तो पूज्य हैं. उसका सम्मान करिए, ठीक वैसे ही के.... किसी के लिए शिवलिग़ पत्थर का टुकड़ा हो सकता है पर उसे किसी अन्य के धार्मिक भावना को ठेस पहुचने का आधिकार इससे नही मिल जाता है! जो बात बिना ऐसे विवाद पैदा किये कही जा सकती है? आखिर उसको ऐसे कहने का क्या तुक है? आज हिन्दू आतकवाद जैसा शब्द आम हो गया है,पकिस्तान जब-तब इस शब्द का इस्तेमाल करने लगा है क्यू? क्युकी इसे ईजाद हमारे ही देश के तत्कालीन सत्ता पार्टी के लोगों ने किया/और आलम ये कि हाफिज सईद जैसे आतकी ने इसके लिए तत्कालीन ग्रहमंत्री को बधाई सन्देश भी दिया था !......माना कोई हिन्दू आतंक के रास्ते पर गया...पर इस १% को ९०% हमने बनाया! वही काम आप भी कर रहे हैं आप राम/रहीम को ऐसी घटनाओं से जोड़ रहे है. एक ने आकर ठेकेदारी की बात कर दी. कल को अपशब्द भी कोई दे देगा. .. देखिये आज के गीतों को...//हम करे तो करेक्टर ढीला है// ऐसे गीतों की जड़ आज से बीस साल पहले के गीतों के हलके फुल्के शब्दों में हैं .. . आज अभिव्यक्ति की आजादी और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का मुकाम ऐसा है कि सनी लियोन अभिनेत्री है, हनी सिंह...हिट है ! क्या कहने !!
अगर मेरे किसी शब्द से आपकी भावना को ढेस पहुंची है तो में उसके लिए क्षमाप्रार्थी हूँ आ० कृष्ण मिश्रा जी , और में उस शब्द को वापस लेती हूँ ,मेरा उदेश्य धार्मिक पूर्वाग्रहों से था I
आ० प्रतिभा पांडे जी आप शब्दों की मर्यादा को समझे //माफ़ कीजियेगा राम/रहीम जैसे पूजनीय शब्दों के साथ ठेकेदारी जैसे शब्द का प्रयोग आपकी मानसिक परिपक्वता की दर्शा रहा हैं! इन्ही सब बातों की ओर इशारा मैंने आ० धर्मेन्द्र भाई से किया था! मुझे अत्यधिक दुःख होता है आप जैसे लोगों के सोच देखकर....अगर किसी का सम्मान नही कर सकते तो कृपया अपमान तो न करें!
उत्तम लघुकथा के लिए बधायी आदरणीय धर्मेंद्र जी ....
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