दो गायक महीनों बाद सवेरे की सैर पर साथ निकले|
एक ने पूछा, "तुमने शास्त्रीय संगीत छोड़ कर ये घटिया राग अलापना क्यों शुरू किया?"
दूसरे ने कहा, "शास्त्रीय संगीत ने आत्मा को चैन और अमन की दौलत दी, लेकिन मेरी पत्नी और बच्चे भूखे रहे| अब मेरे गानों को गली में घूमने वाले गाते हैं, पान की दुकानों और वाहनों में बजता है, बच्चे उन पर नृत्य करते हैं.... और अब देखो कल ही ये खरीदा है|"
उसने एक बड़े से मकान की ओर इशारा किया, जिसे देखते ही पहले के फटे कपड़ों में से शास्त्रीय संगीत की आत्मा
निकल छूटी|
(मौलिक और अप्रकाशित)
Comment
बहुत बढ़िया आदरणीय चंद्रेश भैया | हार्दिक बधाई आपको इस कथा के लिए | सच में ऐसा ही हो रहा है |
आ चंद्रेश जी हर बार की तरह इस बार भी बढ़िया लघुकथा हुई है .
आदरणीय जवाहर लाल सिंह जी, आपका हृदय से आभार आपने लघुकथा को पसंद किया और अपने शब्दों द्वारा मेरा मनोबल बढाया|
बहुत अच्छा विषय व प्रस्तुति आ.चंद्रेश कुमार जी
बेहतरीन लघुकथा हुई है!
रचना को पसंद करने और अपनी अमूल्य टिप्पणी देकर मुझे कृतार्थ करने हेतु मैं आप सभी का हृदय से आभारी हूँ, आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी, आदरणीया राजेश कुमारी जी, आदरणीया प्रतिभा पांडे जी, आदरणीया अर्चना त्रिपाठी जी, आदरणीय तेजवीर सिंह जी सर|
आदरणीय चंद्रेश जी, बहुत शानदार लघुकथा!हार्दिक बधाई!आज का कलाकार यह जान चुका है कि चूल्हा जलाना कितना अनिवार्य है केवल वाह वाही से पेट नहीं भरता!
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