For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

प्यार की आंच से ये फिर से पिघलते क्यूँ हैं (तरही ग़ज़ल 'राज ')

पुरख़तर इश्क की राहें हैं तो चलते क्यूँ हैं

चोट खाकर ही मुहब्बत में सँभलते क्यूँ हैं

 

प्यारा के दीप इन आँखों में यूँ जलते क्यूँ हैं

चाँदनी रात में अरमान मचलते क्यूँ हैं

 

रात में ख़्वाब इन आँखों पे हुकूमत करते

सुब्ह होते ही ये हालत बदलते क्यूँ हैं

 

बेवफाई से हुए  इश्क में जो दिल पत्थर

प्यार की आंच से ये फिर से पिघलते क्यूँ हैं

 

दूर से खूब लुभाते हैं ये तपते सहरा

तिश्नगी में ये मनाज़िर हमे छलते क्यूँ हैं

 

मसअले आम न चाहे ये बनाना आँखें

बेरहम  अश्क ये रुख्सार से ढलते क्यूँ हैं

 

दिल के बरखे पे लिखे दर्द भला कम हैं क्या

‘राज’ जज्बात कलम से ये निकलते क्यूँ हैं  

मौलिक एवं अप्रकाशित 

Views: 804

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 13, 2015 at 10:07am

आ० सुलभ अग्निहोत्री जी,आपका बहुत- बहुत आभार.  

Comment by Sulabh Agnihotri on August 12, 2015 at 6:17pm

बहुत प्यारी गजल हुयी है आदरणीया ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 12, 2015 at 5:53pm

प्रिय प्रतिभा पाण्डेय जी ,आपका दिल से बहुत बहुत शुक्रिया |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 12, 2015 at 5:51pm

मिथिलेश भैया,ग़ज़ल पर शेर दर शेर दाद पाकर अभिभूत हूँ आपको ग़ज़ल पसंद आई मेरा लिखना सार्थक हुआ तहे दिल से आभारी हूँ |

आपका कहना ठीक है दरअसल वरके  को  ही आंचलिक  भाषा में बरखे कहते थे आज भी कहते हैं वैसे सही शब्द वरके ही है ...वर्क-ए-दिल आपने बहुत अच्छा सुझाया है इससे शेर की ख़ूबसूरती दुगनी हो गई है ..इसे जल्द ही ठीक कर लूँगी |तहे दिल से आभारी हूँ|   

Comment by pratibha pande on August 12, 2015 at 5:45pm
इस खूबसूरत ग़ज़ल पे दाद कुबूल कीजिये आ० राजेश कुमारी जी

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on August 12, 2015 at 5:10pm

आदरणीया राजेश दीदी, शानदार ग़ज़ल हुई है शेर दर शेर दाद हाज़िर है-

पुरख़तर इश्क की राहें हैं तो चलते क्यूँ हैं

चोट खाकर ही मुहब्बत में सँभलते क्यूँ हैं........ बेहतरीन मतला हुआ ... बहुत खूब 

 

प्यार के दीप इन आँखों में यूँ जलते क्यूँ हैं

चाँदनी रात में अरमान मचलते क्यूँ हैं..............वाह वाह बहुत सुन्दर ...प्यारा शेर 

 

रात में ख़्वाब इन आँखों पे हुकूमत करते

सुब्ह होते ही ये हालत बदलते क्यूँ हैं........... वाह वाह बहुत बढ़िया कहन 

 

बेवफाई से हुए  इश्क में जो दिल पत्थर

प्यार की आंच से ये फिर से पिघलते क्यूँ हैं........... सुन्दर 

 

दूर से खूब लुभाते हैं ये तपते सहरा

तिश्नगी में ये मनाज़िर हमे छलते क्यूँ हैं...... वाह वाह 

 

मसअले आम न चाहे ये बनाना आँखें.............. ये को जो किया जा सकता है 

बेरहम  अश्क ये रुख्सार से ढलते क्यूँ हैं

 

दिल के बरखे पे लिखे दर्द भला कम हैं क्या...... वर्क से वरक से वरके मतलब पृष्ट ठीक है पर वरके का अपभ्रंश है क्या बरखे ?

‘राज’ जज्बात कलम से ये निकलते क्यूँ हैं  

वर्क-ए-दिल पे जो लिखे दर्द भला कम हैं क्या

‘राज’ जज्बात कलम से ये निकलते क्यूँ हैं 

बढ़िया मक्ता हुआ है 

इस प्रस्तुति पर आपको हार्दिक बधाई 

Comment by narendrasinh chauhan on August 12, 2015 at 4:51pm

बेवफाई से हुए  इश्क में जो दिल पत्थर

प्यार की आंच से ये फिर से पिघलते क्यूँ हैं

लाजवाब ! खूब सुन्दर रचना

Comment by Ravi Shukla on August 12, 2015 at 1:01pm

बहुत बहुत आभार आपका आदरणीया ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 12, 2015 at 12:41pm

बहुत- बहुत  शुक्रिया  रवि शुक्ला जी,  आपको ग़ज़ल पसंद आई मेरा लिखना सार्थक हुआ | बरखे का अर्थ प्रष्ठ हो ता है तथा ग़ज़ल की बह्र --

2122 1122 1122  22  ये  है | आशा  है मैं आपके  संशय  का निवारण  कर पाई. 

Comment by Ravi Shukla on August 12, 2015 at 12:35pm

आदरणीया राजेश जी सुन्‍दर ग़ज़ल के लिये दाद कुबूल करें

बस मकते के शेर मे बरखे का अर्थ स्‍पष्‍ट कर दें तो हमें कुछ आसानी हो जाएगी

बह्र का निवेदन भी है ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted discussions
13 hours ago
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
13 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
yesterday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
yesterday
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"खूबसूरत ग़ज़ल हुई, बह्र भी दी जानी चाहिए थी। ' बेदम' काफ़िया , शे'र ( 6 ) और  (…"
yesterday
Chetan Prakash commented on PHOOL SINGH's blog post यथार्थवाद और जीवन
"अध्ययन करने के पश्चात स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है, उद्देश्य को प्राप्त कर ने में यद्यपि लेखक सफल…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on PHOOL SINGH's blog post यथार्थवाद और जीवन
"सुविचारित सुंदर आलेख "
Saturday

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"बहुत सुंदर ग़ज़ल ... सभी अशआर अच्छे हैं और रदीफ़ भी बेहद सुंदर  बधाई सृजन पर "
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (अलग-अलग अब छत्ते हैं)
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। परिवर्तन के बाद गजल निखर गयी है हार्दिक बधाई।"
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। सार्थक टिप्पणियों से भी बहुत कुछ जानने सीखने को…"
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"आ. भाई बृजेश जी, सादर अभिवादन। गीत का प्रयास अच्छा हुआ है। पर भाई रवि जी की बातों से सहमत हूँ।…"
Wednesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service