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श्रावणी तीझ के अवसर पर कुछ महकती कह-मुकरियाँ

बन सौभाग्य सँवारे मुझको

सावन घिरे पुकारे मुझको

हाथ पकड़ झट कर ले बंदी

क्या सखि साजन?न सखि मेहंदी

 

उसने हाय! शृंगार निखारा  

प्रेम रचा मन भाव उभारा  

प्रेम राह पर गढ़ी बुलंदी

क्या सखि साजन? न सखि मेहंदी

 

अंग लगे तो मन खिल जाए

खुशबू साँसों को महकाए

प्यारी उसकी घेराबंदी

क्या सखि साजन? न सखि मेहंदी

 

उसमें महक दुआओं की है

उसमें चहक फिजाओं की है

हिमशीतल निर्झर कालिंदी

क्या सखि साजन? न सखि मेहंदी

 

दुआ खिली ज्यों रेशम रेशम

सावन लाया मनहर संगम

रेशा रेशा चिंदी चिंदी

क्या सखि साजन? न सखि मेहंदी

 

सिहरन से भर उठता तन-मन

प्रेम करे जब गुंजन नर्तन

गढ़े लकीरें जैसे विधिना

क्या सखि साजन? न न हिना

 

रंग सहेजे प्यार उकेरे

सपनों के संसार उकेरे

चूमूँ मैं दिन रात सहेली

क्या सखि साजन? नहीं हथेली 

(मौलिक और अप्रकाशित)

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Comment

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Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 18, 2015 at 10:31am

आ0 प्राची बहन सुंदर मनभावन कहमुकरियां के लिए कोटि कोटि बधाई ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on August 17, 2015 at 12:56pm

आदरणीया डॉ प्राची सिंह जी, वाकई बहुत महकती मुकरिया है. मेहंदी की महक को अद्भुत ढंग से शाब्दिक किया है. इस प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई. सादर 

Comment by Neeraj Nishchal on August 17, 2015 at 12:27pm

दुआ खिली ज्यों रेशम रेशम

सावन लाया मनहर संगम

रेशा रेशा चिंदी चिंदी

क्या सखि साजन? न सखि मेहंदी

aisi shabdon ki zaadugari nhi dekhi kya khoob bheega bheega ehsaas chhalak kar aaya hai jitani tareef ki jaaye

Comment by narendrasinh chauhan on August 17, 2015 at 9:11am

खूब  सुन्दर रचना  

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