1212 1122 1212 22 तमाम उम्र जलूँ आफ़ताब हूँ मैं तो, पढ़ी न जाय कभी वो किताब हूँ मैं तो
न ढूँढिये मुझे केवल सराब हूँ मैं तो, किसी चमन का फ़सुर्दा गुलाब हूँ मैं तो .
|
Comment
शिज्जू भैया ,आपको ग़ज़ल पसंद आई मेरे लिए ये आश्वस्ति का कारण हुई आपने दुसरे शेर के विषय में कहा जिसमे मैंने सराब शब्द का प्रयोग छलावे के अर्थ में लिया है
आपका तहे दिल से आभार .
मनोज कुमार जी,आपने इस ग़ज़ल को इतना मान दिया अभिभूत हूँ मेरा लिखना सार्थक हो गया तहे दिल से आभारी हूँ दिल से शुभकामनाये
आ० डॉ० गोपाल भाई जी,आपका तहे दिल से आभार |
मिथिलेश भैया ,आपको ग़ज़ल पसंद आई मेरा लिखना सार्थक हुआ आपकी नवाजिश का दिल से शुक्रिया .
अ० दीदी
बेहतरीन गजल आपको बधाई .
आदरणीया राजेश दीदी बढ़िया फ़िल-बदीह ग़ज़ल हुई है. शेर दर शेर दाद कुबूल फरमाएं
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online