For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

शोधन मन का बहुत जरूरी!

शोधन मन का बहुत जरूरी,
क्यों खलता है खालीपन ?
**
बैठो कभी सरित के तट पर
गाते हैं मधुवन
बजते स्वर सुधियों के मद्धिम 
मधुरिम सा गुंजन
 
नयन उघारो अंतर मन के
देखो नव जीवन ।
**
खोलो कभी हृदय के फाटक
बचा हुआ है गीलापन
स्वप्न लिए हैं रंग हजारों
कविता के गुंफन,
 
चित्र अधूरा मत छोड़ो तुम
रंग भरो नूतन ।
**
भला-बुरा सब चला बिसरने
मुखरित नव-नव क्षण
दिनकर देता नव्य दिवस नित
क्यों हैं तू उन्मन ?
 
मन में सुघर भाव को भर के  
करता चल तर्पण ।
क्यों खलता है खालीपन ?
**
मौलिक व अप्रकाशित  
कल्पना मिश्रा बाजपेई

Views: 847

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Nita Kasar on October 27, 2015 at 10:22am
बेहद प्रेरक उम्दा प्रस्तुति है बधाईयां आपको आद० कल्पना मिश्रा जी ।
Comment by Rahila on October 25, 2015 at 4:13pm
बहुत सुन्दर नवगीत ।यूं लगा हर शब्द के साथ मन शीतल होता गया । बहुत बधाई आपको आद. कल्पना जी ।
Comment by kanta roy on October 22, 2015 at 10:26pm
खोलो कभी हृदय के फाटक
बचा हुआ है गीलापन.... वाह !!! अद्भुत कोमल भाव समेटे हुए है इस पद्य के कण - कण में । फीचर पोस्ट में सम्मानित होने का गौरव तो मिलना ही था । ढेरों बधाई आपको आदरणीया कल्पना जी ।
Comment by kalpna mishra bajpai on October 21, 2015 at 6:13pm

आभार आदरणीय  डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव सर आपका /सादर 

Comment by kalpna mishra bajpai on October 14, 2015 at 9:00pm

आदरणीय गिरिराज भंडारी जी ,आपका हार्दिक आभार


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 14, 2015 at 8:19pm

आदरणीया कल्पना जी , प्रस्तुति के लिये आपको हार्दिक बधाइयाँ ॥

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on October 14, 2015 at 8:08pm

आदरणीया - तरपन तो तड़पन भी हो सकता है सही शब्द तर्पण है .

Comment by kalpna mishra bajpai on October 14, 2015 at 7:38pm

आदरणीय Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan"जी हार्दिक आभार

Comment by kalpna mishra bajpai on October 14, 2015 at 7:37pm

आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी हार्दिक आभार /सादर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on October 14, 2015 at 3:54pm

आदरणीया इस प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
yesterday
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Sunday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Saturday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Saturday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Saturday
Shyam Narain Verma commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service