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आशा की किरण ( लघुकथा )

बेटी सनाया के लिए वर अनुसन्धान में हलकान होती रीमा के लिए वो बाँका सुदर्शन किरायेदार आशा की किरण लेकर आया था। इतनी अच्छी तनख्वाह और सभी ऐबों से दूर रहने वाले अश्विन को लेकर उनका मन कुलाँचें भरने लगा।
अब तो वक़्त बेवक़्त पकवान बनकर उसके पास पहुंचने लगे।हर वक्त बेटी की होशियारी का बखान और ममता लुटाने में कोई कसर न छोड़ी थी रीमा ने।कुछ दिन के लिए अपने घर गया अश्विन आज लौटने वाला था।उसे घेरने की पूरी तैयारी कर ली थी उन्होंने।इस बार बेटी के जन्मदिन पर उसकी सगाई का ऐलान करके दोहरे जश्न की पूरी तैयारी थी।
दरवाजे की घण्टी बजी और उन्होंने उत्कंठा से द्वार खोला
" नमस्ते आँटी,कैसी है ? देखिये आपके लिए सरप्राइज़ है,ये है कोमल..मेरी पत्नी " उनके हृदय में चलते झंझावात से बेखबर वह उत्साह से बोलता जा रहा था ।

(मौलिक और अप्रकाशित)

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Comment by Abid ali mansoori on November 4, 2015 at 8:30pm

हार्दिक बधाई आदरणीया ज्योत्सना जी!

Comment by TEJ VEER SINGH on November 4, 2015 at 4:54pm

हार्दिक बधाई आदरणीय ज्योत्सना जी!अच्छी लघुकथा!

Comment by Rahila on November 4, 2015 at 11:28am
हा..हाहा. अच्छा सरप्राइज आदरणीया ज्योत्सना दी! बहुत बधाई आपको इस रचना के लिये ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on November 3, 2015 at 9:00pm

वाह्ह्ह  बहुत खूब अंतिम पंक्ति ने चौंका ही दिया ..हार्दिक बधाई इस सुन्दर प्रस्तुति पर |

Comment by pratibha pande on November 3, 2015 at 7:16pm

 बहुत अच्छी और कसे हुए शिल्प के साथ कथा बुनी है आपने आदरणीया ज्योत्स्ना जी ,हार्दिक बधाई आपको 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on November 3, 2015 at 5:18pm

आदरणीया ज्योत्सना जी बढ़िया प्रस्तुति हुई है बधाई.

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