For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

221 2122  221 2122

रौशन हो दिल हमारा, इक बार मुस्कुरा दो 

खिल जाय बेतहाशा, इक बार मुस्कुरा दो 

 

पलकों की कोर पर जो बादल बसे हुए हैं
घुल जाएँ फाहा-फाहा, इक बार मुस्कुरा दो

 

आपत्तियों के रुत की कुछ है अजीब फितरत
समझो अगर इशारा, इक बार मुस्कुरा दो

 

मालूम है तुम्हें भी कितना कठिन समय है
फिर भी तुम्हारा कहना, ’इक बार मुस्कुरा दो’ !

 

पत्थर के इस शहर में जो धुंध इस कदर है
मिट जायेगा अँधेरा, इक बार मुस्कुरा दो

 

निर्द्वंद्व सो रहा है आगोश में समन्दर
बहका रहा किनारा, इक बार मुस्कुरा दो

 

अभिव्यक्ति ज़िन्दग़ी की - दीपक तथा अँधेरा !
अब जी उठे उजाला, इक बार मुस्कुरा दो

 

स्वीकार हो निवेदन, अनुरोध कर रहा है
ये रोम-रोम सारा.. इक बार मुस्कुरा दो
********************

(मौलिक और अप्रकाशित)

Views: 968

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on November 5, 2015 at 11:44pm

आदरणीय गिरिराजभाईजी, आपकी प्रतिक्रिया और टिप्पणी से कोई रचना सम्मानित होती है. मैं आपसे मिली प्रशंसा को अपने सिर-माथे स्वीकार करता हूँ.
सादर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on November 5, 2015 at 11:44pm

आदरणीय सुशील सरनाजी, आपसे मिला अनुमोदन आश्वस्त करता करता है कि हमारा प्रयास सदिश है. सहयोग बना रहे. हार्दिक धन्यवाद


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on November 5, 2015 at 11:44pm

भाई मनोज कुमर अहसास जी, प्रस्तुति पर पसंदग़ी ज़ाहिर करने के लिए हार्दिक धन्यवाद

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on November 5, 2015 at 9:25pm

आ० सौरभ जी गजल में शब्दों के सुन्दर फाहे सचमुच यही कहते है इक बार मुस्करा दो बाकी मिथिलेश जी ने कुछ कहने के लिए छोड़ा ही नहीं सादर .

Comment by Chhaya Shukla on November 5, 2015 at 7:12pm

क़माल के अशार हुए हैं आदरणीय सौरभ जी हार्दिक बधाई !
शानदार मनुहार पढने को मिला |
सादर नमन!

Comment by Ravi Shukla on November 5, 2015 at 6:19pm
आदरणीय सौरभ जी बहुत ही शानदार ग़ज़ल कही है हर शेर में आपका अंदाज़ लफ्ज़ दर लफ्ज़ महसूस हो रहा है । बहुत बहुत बधाई आपको इस ग़ज़ल के लिए ।
मालूम है तुम्हे भी कितना कठिन समय है
फिर भी तुम्हारा कहना इक बार मुस्करा दो इस नदाज़ से कहा गया है की न कहनेंकि कोई गुंजाइश बचती ही नही । शेर दर ग़ज़ल मुस्करा ही तो देगी इस आग्रह पर । बहुत बहुत बधाई आदरनीय ।
Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on November 5, 2015 at 5:29pm

पत्थर के इस शहर में जो धुंध इस क़दर है
मिट जायेगा अँधेरा जो इसबार मुस्करा दो
बेहद उम्दा भाव
बधाई पूज्य सौरभ पाण्डेय जी

Comment by Abid ali mansoori on November 5, 2015 at 4:18pm

पलकों की कोर पर जो बादल बसे हुए हैं 
घुल जाएँ फाहा-फाहा, इक बार मुस्कुरा दो

 

पत्थर के इस शहर में जो धुंध इस कदर है 
मिट जायेगा अँधेरा, इक बार मुस्कुरा दो

 

वाह क्या बात है आदरणीय सौरभ जी, हार्दिक वधाई आपको!

Comment by DR. BAIJNATH SHARMA'MINTU' on November 5, 2015 at 2:47pm

अभिव्यक्ति ज़िन्दग़ी की - दीपक तथा अँधेरा ! 
अब जी उठे उजाला, इक बार मुस्कुरा दो|

   अच्छी ग़ज़ल ................. बधाई!!!!!

Comment by Shyam Narain Verma on November 5, 2015 at 2:47pm

".वाह क्या बात है ,,,,,,,,,,,,,खूबसूरत गजल के लिए आपको हार्दिक बधाईसादर "

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Apr 30
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Apr 29
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Apr 28
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Apr 28
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Apr 27
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Apr 27
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Apr 27

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service