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डरे जो तिमिर से भला क्या मिलेगा
लड़ो जुगनुओं का सहारा मिलेगा /1
हमेशा नहीं यूँ अँधेरा मिलेगा
भले ही रहे कम उजाला मिलेगा /2
कहावत है तम की जहाँ बस्तियाँ हों
वहीं दीपकों का बसेरा मिलेगा /3
चलो ढूँढते हैं उसे रात भर अब
कहीं तो तिमिर का किनारा मिलेगा /4
भटक जाओ गर तुम गगन को निहारो
बताता दिशा इक वो तारा मिलेगा /5
फकत जागने की करो कोशिशें अब
जगोगे अगर तो सवेरा मिलेगा /6
मौलिक व अप्रकाशित
© लक्ष्मण धामी ‘मुसाफिर’
Comment
आ० भाई श्री सुनील जी पशंसा के लिए आभार l
आ० भाई भाई मिथिलेश जी ग़ज़ल की प्रशंसा के लिए हार्दिक धन्यवाद l
आ० भाई विजय जी प्रशंसा के लिए आभार l
आ० भाई गोपालनारायण जी अपनी उपस्थिति से ग़ज़ल का मन बढ़ने के लिए हादिक धन्यवाद l
आ० भाई गिरिराज जी उत्साहवर्धन के लिए आभार l
आदरणीय लक्ष्मण धामी सर जी, बेहतरीन अशआर से सजी शानदार ग़ज़ल हुई है. ग़ज़ल के हर शेर का सकारात्मक भाव और आशावादी होने के लिए प्रेरित करना भा गया. बहुत बहुत बधाई इस प्रस्तुति पर.
डरे जो तिमिर से भला क्या मिलेगा
लड़ो जुगनुओं का सहारा मिलेगा /-------------- बहुत सुन्दर धामी जी .
क्या बात है , आ. लक्ष्मण भाई खूब सूरत मतला हुआ है -
डरे जो तिमिर से भला क्या मिलेगा
लड़ो जुगनुओं का सहारा मिलेगा -- बहुत खूब
इस शे र को अगर ऐसे कहें तो -
चलो ढूँढते हैं उसे रात भर अब
कहीं रोशनी का किनारा मिलेगा ( तिमिर को ढूढ्ना मुझे ख़टक रहा है )
और ये शेर भी खूब कहा है
फकत जागने की करो कोशिशें अब
जगोगे अगर तो सवेरा मिलेगा --- वाह ! गज़ल के लिये आपको हार्दिक बधाइयाँ ।
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