नेताई गजल
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सदन में आप गर आओ वतन की बात मत करना
सहोदर जैसे आपस में गबन की बात मत करना /1
उड़ाए हमने चुपके से लँगोटों के लिए सच है
शहीदों के हों नंगे तन कफन की बात मत करना /2
कभी तुम बोल देते हो कभी हम बोल देते हैं
चुनावी बात सबकी ही वचन की बात मत करना /3
दिखा करते हैं फूलों सा मगर फितरत है शूलों सी
गले आपस में मिलने पर चुभन की बात मत करना /4
हमें सावन के अंधे सा हरा सब कुछ ही दिखता है
हमारे सामने कोई विजन की बात मत करना /5
है जनता की समस्या का हमारे पास डंडा हल
अगर उठ जाए थोड़ा सा दमन की बात मत करना /6
कहा हमने अगर विकसित तो विकसित देश है लोगो
यहाँ तुम झोपड़ी या फिर भवन की बात मत करना /7
मौलिक व अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी ‘मुसाफिर’
Comment
आदरणीय लक्ष्मण धामी सर जी, शानदार ग़ज़ल हुई है. शेर दर शेर दाद ओ मुबारकबाद कुबूल फरमाएं
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