2211 2222 2112 22
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हर हद को ही तोड़ा है बरसात के पानी ने
किस बात को माना है बरसात के पानी ने /1
उस वक्त तो सूखा था जीवन क्या हरा होता
अब गाँव डुबाया है बरसात के पानी ने /2
ये जश्न की बेला है सूखे की विदाई की
नदिया को भी न्योता है बरसात के पानी ने /3
मत खेत की बोलो तुम भाग्य ही ऐसा था
घर द्वार भी रौंदा है बरसात के पानी ने /4
कल रात सुना है फिर सूखे की शिकायत पर
किस किस को न तोड़ा है बरसात के पानी ने /5
पहले से ही क्या कम था भीगा हुआ दामन जो
अब और भिगाया है बरसात के पानी ने /6
दुखती हुई आँखों से मिलने पे कहा इतना
‘मुझसे भी तो नाता है’ बरसात के पानी ने /7
मौलिक व अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी ‘मुसाफिर’
Comment
हार्दिक बधाई आदरणीय लक्ष्मण धामी जी!शानदार गज़ल!
पहले से ही क्या कम था भीगा हुआ दामन जो
अब और भिगाया है बरसात के पानी ने
221----1222---221---1222
मत खेत की बोलो तुम, ये भाग्य ही ऐसा था
शानदार ग़ज़ल
बधाई
बहुत सुन्दर ... सादर बधाई स्वीकारें आदरणीय |
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