For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

उस पार ...

सच मानिए
नदिया के उस पार तो
कुछ भी नहीं है
जो कुछ भी है
सब इस पार यहीं है
आरम्भ भी यहीं है
अंत भी यहीं है
खुद से मिलने का
खुद में समाया
जीव का अलौकिक
पंत भी यहीं है
उस पार तो
कुछ भी नहीं है //

एक घर से
दूसरे घर की दूरी
एक श्वास भर ही तो है //

एक स्वप्न और
यथार्थ की दूरी
एक श्वास भर ही तो है //

एक मिलन और
विछोह की दूरी
एक श्वास भर ही तो है //

फिर क्या है
नदिया के उस पार
कुछ भी तो नहीं है
एक भ्रम है उस पार
यथार्थ तो यहीं है
सवाल भी यहीं है
जवाब भी यहीं है
उससे मिलन के
भटके जीव के
मोक्ष का द्वार भी यहीं है
उस पार तो सच
कुछ भी नहीं है //

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 590

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sushil Sarna on February 6, 2016 at 6:51pm

आदरणीया प्रतिभा पाण्डेय  जी प्रस्तुति आपके आत्मीय स्नेह के लिए  कृतज्ञ है। हार्दिक आभार आपका।

Comment by pratibha pande on February 6, 2016 at 2:59pm

दार्शनिक भाव लिया सुन्दर दिल को छू लेने वाली  रचना आपकी चिरपरिचित सशक्त कलम से ,हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय सुशील जी 

Comment by Sushil Sarna on February 6, 2016 at 12:39pm

आदरणीय सौरभ सर मेरी प्रस्तुति ने आपके ज़हन में 'मधुबाला' की रचना को याद दिल दिया इससे बड़ा मेरे लिए आपका आशीर्वाद क्या होगा। प्रस्तुति में निहित भावों को मान देने का तहे दिल से शुक्रिया।  मैं आपके सुझाव पर अवशय अमल करूंगा और मधुबाला की रचना को अवशय देखूँगा।  आपका पुनः हार्दिक आभार। 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on February 5, 2016 at 10:30pm

आदरणीय सुशील सरनाजी, वस्तुतः मुझे आपकी प्रस्तुत कविता पढ़ते हुए मधुबाला में संकलित अमर रचना ’इस पार प्रिये तुम, हो मधु है, उस पार न जाने क्या होगा..’ की बरबस याद आ गयी ! आपकी प्रस्तुति का मूल चाहे जहाँ से प्रेरित है लेकिन आपकी प्रस्तुति आश्वस्तिकारी है. वैसे इन्हीं विन्दुओं को शाब्दिक करती मधुबाला में संकलित उक्त गीत को भी एक बार देख लेना श्रेयस्कर होगा. गीति-तत्त्व के भी आयाम खुलते जायेंगे. 

हार्दिक शुभकामनाएँ.

Comment by Sushil Sarna on February 5, 2016 at 12:11pm

आदरणीय   TEJ VEER SINGH जी प्रस्तुति आपके आत्मीय स्नेह की कृतज्ञ है। हार्दिक आभार आपका।

Comment by Sushil Sarna on February 5, 2016 at 12:11pm

आदरणीय  मिथिलेश वामनकर जी प्रस्तुति आपके आत्मीय स्नेह की कृतज्ञ है। हार्दिक आभार आपका।

Comment by TEJ VEER SINGH on February 5, 2016 at 10:31am

हार्दिक बधाई आदरणीय सुशील सरना  जी!बेहतरीन प्रस्तुति!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on February 4, 2016 at 10:58pm

आदरणीय सुशील सरना सर, सत्य को मुखर करती बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति हुई है. इस गहन वैचारिक प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई 

Comment by Sushil Sarna on February 4, 2016 at 7:26pm

आदरणीय समीर कबीर जी प्रस्तुति आपके आत्मीय स्नेह की कृतज्ञ है। हार्दिक आभार आपका।

Comment by Sushil Sarna on February 4, 2016 at 7:25pm

आदरणीया कांता रॉय जी प्रस्तुति के भावों को आत्मीय सम्मान ने एक नयी ऊंचाई प्रदान की है। आपका तहे दिल से शुक्रिया।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

बृजेश कुमार 'ब्रज' posted a blog post

गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा

सार छंद 16,12 पे यति, अंत में गागाअर्थ प्रेम का है इस जग मेंआँसू और जुदाईआह बुरा हो कृष्ण…See More
13 hours ago
Deepak Kumar Goyal is now a member of Open Books Online
13 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ज़िन्दगी की रह-गुज़र दुश्वार भी करते रहे
"धन्यवाद आ. बृजेश जी "
yesterday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"धन्यवाद आ. बृजेश जी "
yesterday
अजय गुप्ता 'अजेय commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (कुर्ता मगर है आज भी झीना किसान का)
"अपने शब्दों से हौसला बढ़ाने के लिए आभार आदरणीय बृजेश जी           …"
yesterday
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ज़िन्दगी की रह-गुज़र दुश्वार भी करते रहे
"ज़िन्दगी की रह-गुज़र दुश्वार भी करते रहेदुश्मनी हम से हमारे यार भी करते रहे....वाह वाह आदरणीय नीलेश…"
Wednesday
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (कुर्ता मगर है आज भी झीना किसान का)
"आदरणीय अजय जी किसानों के संघर्ष को चित्रित करती एक बेहतरीन ग़ज़ल के लिए बहुत-बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं…"
Wednesday
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"आदरणीय नीलेश जी एक और खूबसूरत ग़ज़ल से रूबरू करवाने के लिए आपका आभार।    हरेक शेर…"
Wednesday
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - यहाँ अनबन नहीं है ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय भंडारी जी बहुत ही खूब ग़ज़ल कही है सादर बधाई। दूसरे शेर के ऊला को ऐसे कहें तो "समय की धार…"
Wednesday
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post ग़ज़ल....उदास हैं कितने - बृजेश कुमार 'ब्रज'
"आदरणीय रवि शुक्ला जी रचना पटल पे आपका हार्दिक अभिनन्दन और आभार। लॉगिन पासवर्ड भूल जाने के कारण इतनी…"
Wednesday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"जी, ऐसा ही होता है हर प्रतिभागी के साथ। अच्छा अनुभव रहा आज की गोष्ठी का भी।"
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"अनेक-अनेक आभार आदरणीय शेख़ उस्मानी जी। आप सब के सान्निध्य में रहते हुए आप सब से जब ऐसे उत्साहवर्धक…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service