For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

भर कर जेबें रोज चढ़े है - ( ग़ज़ल ) -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर "

2222    2222     2222    222

सुनते सुनते  गीत प्रेम का क्या सूझी पुरवाई को
कोयल आँसू भर भर देखे आग लगी अमराई को /1

बात कहूँ तो बन जाएगी जग की यार हँसाई को
जैसे तैसे झेल रहा  हूँ  जालिम की रूसवाई को /2

दिन तो बीते आस में यारो शायद चलती राह मिले
किन्तु पुराने खत पढ़  काटा  रातों की तनहाई को /3

वो साहिल की रेत देख कर चाहे यूँ ही लौट गया
ख्वाबों में  देखेगा  लेकिन  दरिया की गहराई को /4

भर कर जेबें  रोज चढ़े है मस्ती  को सैलानी तू
हमको रोटी विवश कर गई पर्वत से उतराई को /5

कहते हैं उसका तो रिश्ता सूरज रहने तक ही है
ढूँढ रहा है क्यों तू  पगले साँझ ढले परछाई को /6

बच्चे की जिद चाँद को  छूना पूरे घर का दर्द बना
घर में थाल नहीं  पानी  का बच्चे की मनवाई को /7

ढूँढ रहे हैं  खोट  तात में इस बस्ती के लोग सभी
माता का सम्बोधन बोला जब से घर की बाई को /8

यार ‘मुसाफिर’ इस युग जग में नेकी मत कर कोई भी  
चर्चित  होना  है  गर  तुझको  आग  लगा  अच्छाई को /9

मौलिक और अप्रकाशित

लक्ष्मण धामी "मुसाफिर "

Views: 730

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by kanta roy on February 4, 2016 at 11:15am
वाह ! बहुत ही शानदार गजल की प्रस्तुति हुई है आपकी आदरणीय लक्ष्मण धामी जी । बधाई कबूल फरमाईयेगा ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on February 4, 2016 at 12:38am

आदरणीय लक्ष्मण धामी सर जी, बहुत शानदार ग़ज़ल कही है. शेर दर शेर दाद हाज़िर है. सादर 

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on February 3, 2016 at 7:38pm

जनाब लक्ष्मण धामी साहिब ,   बहुत अच्छी ग़ज़ल कही आपने ,मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं। ... शेर 6 के सानी मिसरे में जो क़ाफ़िया परछाई इस्तेमाल किया है उसे देख लीजिये क्योकि सही शब्द परछाईं है। .... शुक्रिया

Comment by Samar kabeer on February 3, 2016 at 6:18pm
जनाब लक्ष्मण धामी'मुसाफ़िर'जी आदाब,बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई है,बधाई स्वीकार करें !
सातवें शैर के ऊला मिसरे में 'ज़िद'चूँकि स्त्रीलिंग है इस वजह से मिसरे का आख़री शब्द 'बना'की जगह 'बनी'करना उचित होगा ?
Comment by TEJ VEER SINGH on February 3, 2016 at 12:26pm

हार्दिक बधाई आदरणीय लक्ष्मण धामी जी!बेहतरीन गज़ल!

Comment by Ravi Shukla on February 3, 2016 at 10:58am

आदरणीय लक्ष्‍मण जी बहुत बढि़या गजल कही है आपने शेर दर शेर दाद कुबूल करें खास कर ये शेर तो दिल को छू गया

ढूँढ रहे हैं  खोट  तात में इस बस्ती के लोग सभी
माता का सम्बोधन बोला जब से घर की बाई को.....   बहुत बहुत बधाई इस गजल के लिये ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 166 in the group चित्र से काव्य तक
"कृपया ठेले पढ़ें।एडिट का समय निकल जाने के बाद इस टंकण त्रुटि पर ध्यान गया"
11 minutes ago
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 166 in the group चित्र से काव्य तक
"रोला छंद  _ चित्र दिखाता मस्त, एक टोली बच्चों की हैं थोड़े शैतान, मगर दिल के सच्चों की ठान…"
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 166 in the group चित्र से काव्य तक
"रोला छंद ******** पके हुए  ढब  आम,  तोड़ने  बच्चे आये। गर्मी का उपचार, तभी यह…"
1 hour ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 166 in the group चित्र से काव्य तक
"वाह, आदरणीय, वाह!  प्रवहमान अभिव्यक्ति पर हार्दिक बधाई शुभ-शुभ "
2 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]
"आदरणीय समर  भाई , ग़ज़ल पर  उपस्थिति  और विस्तृत सलाह के लिए आपका आभार तक़ाबूल-ए-…"
4 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 166 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय  बड़े  भाई , आपकी रचना चित्र को अच्छे से  चित्रित  कर रही है , अंतिम बंद…"
4 hours ago
Samar kabeer commented on गिरिराज भंडारी's blog post एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]
"जनाब गिरिराज भंडारी जी आदाब, काफ़ी समय बाद मंच पर आपकी ग़ज़ल पढ़कर अच्छा लगा । ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,…"
5 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 166 in the group चित्र से काव्य तक
"बच्चों का ये जोश, सँभालो हे बजरंगी भीत चढ़े सब साथ, बात माने ना संगी तोड़ रहे सब आम, पहन कपड़े…"
12 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 166 in the group चित्र से काव्य तक
"रोला छंद ++++++   आँगन में है पेड़, मौसमी आम फले…"
13 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . .तकदीर
"आदरणीय अच्छे सार्थक दोहे हुए हैं , हार्दिक बधाई  आख़िरी दोहे की मात्रा फिर से गिन लीजिये …"
yesterday
सालिक गणवीर shared Admin's page on Facebook
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी's blog post was featured

एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]

एक धरती जो सदा से जल रही है   ********************************२१२२    २१२२     २१२२ 'मन के कोने में…See More
Tuesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service