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संध्या के बाद पूर्व ऊषा तक जो निशि भाग चुना मैंने I उस  शब्द-हीन सन्नाटे में  ईश्वर का राग सुना मैंने II                                                   पुच्छल  तारे की थी वीणा शशि-कर के तार सजीले …

संध्या के बाद पूर्व ऊषा तक जो निशि भाग चुना मैंने I

उस  शब्द-हीन सन्नाटे में  ईश्वर का राग सुना मैंने II

                                                 

पुच्छल  तारे की थी वीणा

शशि-कर के तार सजीले थे

उँगलियाँ चलाता था मारुत

रजनीले  लोचन  गीले थे

सरगम संगीत प्रवाहित था अपना प्रतिभाग गुना मैंने I

संध्या के बाद पूर्व ऊषा  ---------------------------------

 

मुखरित होता है मौन कभी

नीरवता  में  भी रव होता

धरती पर आना फिर जाना

इतने में  भव  संभव होता

रंगों की होली भी खेली जीवन का फाग बुना मैंने I

संध्या के बाद पूर्व ऊषा ----------------------------

 

उसकी उदात्त चिर छाया का

कैसा उपहास किया हमने ?

वह भूल गया अपना गायन

संसृति का नाश किया हमने

सपनीले सब सन्दर्भ तोड़ अपना सिर जाग धुना मैंने I

 

संध्या के बाद पूर्व ऊषा तक जो निशि भाग चुना मैंने I

उस  शब्द-हीन सन्नाटे में  ईश्वर का राग सुना मैंने I

(मौलिक व अप्रकाशित )

                                                 

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Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on February 9, 2016 at 9:36am
आ० प्रतिभा जी , आपका आभारी हूँ . सादर .
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on February 9, 2016 at 9:35am
आ० राजेश दीदी . आपके प्रोत्साहन से तोष मिला . सादर .
Comment by pratibha pande on February 8, 2016 at 10:25pm

मुखरित होता है मौन कभी

नीरवता  में  भी रव होता

धरती पर आना फिर जाना

इतने में  भव  संभव होता

रंगों की होली भी खेली जीवन का फाग बुना मैंने I

संध्या के बाद पूर्व ऊषा ----------------------------,सुन्दर गीत पर हार्दिक बधाई आदरणीय,  सादर 

 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on February 8, 2016 at 9:10pm
पुच्छल तारे की थी वीणा
शशि-कर के तार सजीले थे
उँगलियाँ चलाता था मारुत
रजनीले लोचन गीले थे
सरगम संगीत प्रवाहित था अपना प्रतिभाग गुना मैंने I
संध्या के बाद पूर्व ऊषा ---------------------------------
वाह वाह आ० डॉ गोपाल भाई जी मध्यरात्री व् भोर होने तक के सन्नाटे में अद्दभुत राग बुना है आपने गीत में बहुत ही सुन्दर लिखा है दिल से बधाई लीजिये
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on February 8, 2016 at 11:35am
आ० समर कबीर जी - आपका सादर आभार .
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on February 8, 2016 at 11:34am
आ०वामनकर जी , आपका हार्दिक धन्यवाद . कविता का शीर्षक 'ईश्वर का राग ' है , बाकी सब पोस्ट की त्रुटियाँ हो सकती हैं . सादर .
Comment by Samar kabeer on February 7, 2016 at 5:43pm
जनाब गोपाल नारायण जी आदाब,बहुत सुंदर लगा आपका गीत,बधाई स्वीकार करें !

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on February 7, 2016 at 4:11pm

आदरणीय गोपाल सर बहुत शानदार गीत लिखा है आपने. गुनगुनाकर मुग्ध हो गया. इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई 

एक निवेदन -संभवतः आप गीत का शीर्षक या विषय लिखना भूल गए इसलिए गीत का शीर्षक इतना बड़ा हो गया. सादर 

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