(आदरणीय सौरभ पाण्डेय के पितृ-शोक पर एक हार्दिक संवेदना )
पहले संदर्भ प्रसंग सहित इस जगती में परिभाषित कर
फिर हो जाते हैं हाथ दूर जीवन का दीप प्रकाशित कर
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देते हैं वे सन्देश हमें
हर दीपक को बुझ जाना है
पर ज्योति-शेष रहते-रहते
शत-शत नव दीप जलाना है
फैलायी जो रेशमी रश्मि उसको अब रंग-विलासित कर
पहले संदर्भ प्रसंग सहित......
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है सहज रोप देना पादप
तप है उसको जीवित रखना
करना पुष्पित-पल्लवित फलित
वर्जित पर आशा-फल चखना
जिसका विश्वास न हो जग को प्रिय ऐसा कुछ प्रत्याशित कर
पहले संदर्भ प्रसंग सहित.....
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जिस पथ पर सिखलाया चलना
उस पर अभियान रचूंगा मैं
हो तात ! यशस्वित देवलोक
ऐसी संसृति विरचूंगा मैं
सुधियों को सहज सहेजूंगा श्रृद्धा से सरस सुवासित कर
पहले संदर्भ प्रसंग सहित.....
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जो कुछ जैसा पाया पावन
उसका प्रतिदान नहीं होता
स्वर जब हो जाये छिन्नतार
तब कलरव गान नही होता
भावों को मानस है मथता अंतर में ही उद्भासित कर
पहले संदर्भ प्रसंग सहित....
क्षण भर में अंतर्धान हुए
तुम उत्तरीय को झिटक पिता
स्तब्ध शांत हम देख रहे
धू-धू कर जलती हुयी चिता
मिलने आयेंगे एक दिवस अपने सब कर्म सितासित कर
पहले संदर्भ प्रसंग सहित....
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(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Comment
इस मार्मिक श्रद्धांजली हेतु हार्दिक आभार सर....
हार्दिक आभार आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी !आपने बहुत सुंदर और मार्मिक श्रद्धांजली अर्पित की है स्वर्गीय पुन्यात्मा को!हम सभी इस पावन कर्म में आपके साथ हैं!
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