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भ्रम भुला दो तुम ज़रा...ग़ज़ल// डॉ. प्राची

2122,2122,2122,212

ताज है या एक सूली ये बता दो तुम ज़रा।
इश्क के हर राज़ से पर्दा उठा दो तुम ज़रा।

होश में हूँ अब तलक इस बात पर हैराँ हो क्यों?
इश्क है गर नीँद तो मुझको सुला दो तुम ज़रा।

फूल की हर सेज पर तो चल चुके अब तक बहुत,
है चुभन गर इश्क तो, काँटे बिछा दो तुम ज़रा।

मेरी हस्ती आज भी मुझमें बची ज़िंदा कहीं,
इश्क है मिटना अगर, मुझको मिटा दो तुम ज़रा।

मेरी इन वीरानियों में चित्र कोई बन सके,
ख्वाब कुछ रंगीन पलकों पर सजा दो तुम ज़रा।

एक में जुड़ एक ग्यारह सा हमारा साथ हो,
ज़िन्दगी ग्यारह गुना सीधे बड़ा दो तुम ज़रा।

दो अधूरे मिल के क्या पूरी करेंगे दास्ताँ?
बिन तुम्हारे मैं अधूरी!!! भ्रम भुला दो तुम ज़रा।

मौलिक और अप्रकाशित

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Comment by Dr Ashutosh Mishra on April 1, 2016 at 2:36pm

आदरणीया प्राची जी ..दिल को छू लेने वाले खयालो और खूबसूरत अहसासों से भरी इस शानदार ग़ज़ल के लिए तहे दिल बधाई स्वीकार करें सादर 

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on March 29, 2016 at 10:23pm

अच्छे अश’आर हुए हैं आदरणीया प्राची जी, दाद कुबूल कीजिए

Comment by Sushil Sarna on March 29, 2016 at 7:49pm

फूल की हर सेज पर तो चल चुके अब तक बहुत,
है चुभन गर इश्क तो, काँटे बिछा दो तुम ज़रा।

वाह वाह .... बड़े ही खूबसूरत अहसासातों से आपने इस ग़ज़ल को सजाया है। इस दिलकश प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीया डॉ. प्राची सिंह जी।

Comment by narendrasinh chauhan on March 29, 2016 at 2:32pm

फूल की हर सेज पर तो चल चुके अब तक बहुत,
है चुभन गर इश्क तो, काँटे बिछा दो तुम ज़रा  ,,,लाजवाब 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on March 29, 2016 at 12:30pm

एक में जुड़ एक ग्यारह सा हमारा साथ हो,
ज़िन्दगी ग्यारह गुना सीधे बड़ा दो तुम ज़रा। - बहुत  खूब  | लाजवाब युग्म  | हार्दिक  बधाई 

Comment by kanta roy on March 28, 2016 at 1:35pm

फूल की हर सेज पर तो चल चुके अब तक बहुत,
है चुभन गर इश्क तो, काँटे बिछा दो तुम ज़रा।.....वाह ! प्रेम की  पराकाष्ठा  को  चित्रित  करती  हुई  अति  संवेदनशील हर अशआर  हुए  है .भावों  की  गहराई  में  डूबकर इसको   पढ़ना  बेहद सकूँ  सा  लगा . बहुत -बहुत  बधाई  आपको  इस  सृजन  के  लिए  आदरणीया  प्राची  जी  

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