नव गीत उसने यूँ ही कहा गीत रचता हूँ मैं आप हैं कि मुझे आजमाने लगे
यह हुनर तो मिला है मुझे जन्म से मांजने में इसे पर जमाने लगे
गीत रचना हँसी- खेल सा कुछ नहीं
यह सभी को मिला शाश्वत दंड सा
टूटता है ह्रदय जब सुमन-दंश से
तब महकता है नव-गीत श्रीखंड सा
ताप तुमने विरह का सहा ही नहीं प्रेम का ग्रन्थ मुझको थमाने लगे
नेह की भावना में प्रखर भक्ति हो
एक पूजा उदय हो उदय शक्ति हो
प्यार-व्यापार हो कामना से रहित
ज्योति सी जल रही दिव्य अनुरक्ति हो
सिद्ध तब गीत होता है जब भावना मौन अंतस में धूनी रमाने लगे
हो करुण–रस बसा जब ह्रदय-कोश में
शारदा से मिला मुक्त वरदान हो
वेदना का प्रभंजन उठे काल सा
आंसुओं से भरा भाव अवदान हो
गीत तब शीत के पुष्प सा हो उदय रौप्य के छत्र सा चमचमाने लगे
जो अभावों में पलता रहा बेखबर
जिसको मिलता नहीं कुछ भी संसार में
जंग जिसने लड़ी जिदगी की सदा
जिसने कांटे सजाये थे अभिसार में
भूल जाता है दुखिया सभी क्लेश जब भावना में मनोगति समाने लगे
आज कोई भी वीणा बजाता नहीं
साज है किन्तु कोई सजाता नहीं
वीणावादिनिको कवि पूजते हैं सदा
हंत ! कोई हमें राग आता नही
सबमनीषी यहाँ पर स्वयम् सिद्ध हैं कवि बने कीर्तिकंचन कमाने लगे
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Comment
डॉ गोपाल जी ..सुन्दर रचना ..सुन्दर भाव गाने गुनगुनाने को मन करता गया ..
आज कोई भी वीणा बजाता नहीं
साज है किन्तु कोई सजाता नहीं
वीणावादिनिको कवि पूजते हैं सदा
हंत ! कोई हमें राग आता नही
सबमनीषी यहाँ पर स्वयम् सिद्ध हैं कवि बने कीर्तिकंचन कमाने लगे.... बहुत सुन्दर
भ्रमर ५
बहुत सुंदर भावों की अनुपम रचना | बहुत बहुत बधाई
आदरणीय गोपाल नारायन जी, यह रचना नवगीत नहीं है. इसे गेय कविता कहें. हर गीति-प्रतीति गीत रचना नहीं होती और नवगीत तो नहीं ही होती.
लेकिन यह अवश्य है कि यह बहुत ही अच्छी और सार्थक गेय-कविता है. हार्दिक शुभकामनाएँ
आ० दीदी --आपका आशीष पाकर अभिभूत हूँ . सादर .
आ० लडीवाला जी --बहुत बहुत धन्यवाद
आ०निकोरेजी --आपका स्नेह अमूल्य है मेरे लिए , सादर .
आ० सरना जी - अनुग्रहीत हुआ आदरणीय .
आ० रामबली जी -आपका हार्दिक आभार .
वाह वाह शानदार नवगीत लिखा है आपने बहुत सुन्दर आ० डॉ० गोपाल भाई जी हर बंद शानदार हुआ दिल से ढेर सारी बधाई लीजिये
आज कोई भी वीणा बजाता नहीं
साज है किन्तु कोई सजाता नहीं
वीणावादिनिको कवि पूजते हैं सदा
हंत ! कोई हमें राग आता नही
सबमनीषी यहाँ पर स्वयम् सिद्ध हैं कवि बने कीर्तिकंचन कमाने लगे | - अनुमप भावों की सुंदर प्रस्तुति नव गीत में | बधाई आदरणीय
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online