बह्र : २२१२ १२११ २२१२ १२
जब जब तुम्हारे पाँव ने रस्ता बदल दिया
हमने तो दिल के शहर का नक्शा बदल दिया
इसकी रगों में बह रही नफ़रत ही बूँद बूँद
देखो किसी ने धर्म का बच्चा बदल दिया
अंतर गरीब अमीर का बढ़ने लगा है क्यूँ
किसने समाजवाद का ढाँचा बदल दिया
ठंडी लगे है धूप जलाती है चाँदनी
देखो हमारे प्यार ने क्या क्या बदल दिया
छींटे लहू के बस उन्हें इतना बदल सके
साहब ने जा के ओट में कपड़ा बदल दिया
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(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Comment
बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय आशुतोष मिश्र जी। बह्र लिखने में मुझसे एक त्रुटि हो गई है ये बह्र २२१२ १२११ २२१२ १२ न होकर २२१ २१२१ १२२ १२१२ है। यानी स्पेस थोड़ा इधर उधर हो गया था। नीचे विस्तृत जानकारी दी गई है।
बह्रे मुजारे मुसम्मन् अखरब मक्फूफ महजूफ |
22121211221212 |
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मफ्ऊलु |
फायलातु |
मफाईलु |
फायलुन् |
221 |
2121 |
1221 |
212 |
बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय समर कबीर साहब।
बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय सुशील जी।
बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय नादिर ख़ान साहब।
शुक्रिया आदरणीय महर्षि जी। किसी भी बह्र के अंत में आने वाले गाम यानी गुरु के बाद एक लाफ यानि लघु लेने की छूट होती है। ज़्यादा जानकारी के लिए वीनस केसरी जी की पुस्तक "ग़ज़ल की बाबत" खरीद सकते हैं।
इस सुंदर ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई भाई धर्मेन्द्र जी बह २२ २२ २२ २२ २ भी की जा सकती है अथवा नहीं मुझे ज्यादा जानकारी नहीं है पर ऐसा समीचीन लगा .मुझे ऐसा लगा इसलिए लिखा अन्यथा मत लीजियेगा ..सादर
ठंडी लगे है धूप जलाती है चाँदनी
देखो हमारे प्यार ने क्या क्या बदल दिया
वाह बहुत खूब आदरणीय ... खूबसूरत भावों की इस ग़ज़ल के लिए दिल से बधाई स्वीकार करें।
बहुत खूब कहा आदरणीय धर्मेंन्द्र जी, हर शेर अपने आप में कहानी कह रहा है। इस शानदार लिए बहुत मुबारकबाद ...
सुन्दर गजल कही है आपने आ.धर्मेन्द्र कुमार सिंह जी ,सर कृपया
"इसकी रगों में बह रही नफ़रत ही बूँद बूँद"
का बहर समझा दें
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