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हमें अब याद आते हैं सुहानी शाम के चर्चे
तुम्हारी बज़्म की बातें तुम्हारे नाम के चर्चे
सदायें ये मुहब्बत की दिशायें गुनगुनायेंगी
कहीं राधा कहीं मीरा कहीं पे श्याम के चर्चे
लिये बैठा हूँ नम आँखें अधूरा प्यार का किस्सा
कभी मजनू कभी राँझे कभी खय्याम के चर्चे
किसी ने राग जो छेड़ा घुली खुशबू हवाओं में
दुआओं में महक जाते दिले गुमनाम के चर्चे
जलाये जा रहा कोई दिया दिल के दरीचे में
जिगर पे ज़ख्म भी खाये हुये अन्जाम के चर्चे
नहीं है भूलना मुमकिन जुदाई का वो अफ़साना
सुनाई दे रहे हर सिम्त सूनी बाम के चर्चे
यही तो बात ऐसी है जुदा हस्ती हमारी में
वहाँ हक्काम की बातें यहाँ पे आम के चर्चे
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
सुन्दर शब्दों में उत्साहवर्धन के लिए आपका धन्यवाद आदरणीया सीमा शर्मा मेरठी जी
उत्साहवर्धन के लिए आपका धन्यवाद आदरणीय narendrasinh chauhan जी
आपका हार्दिक अभिनन्दन एवं आभार आदरणीय laxman dhami जी
रचना पटल पे आपका हार्दिक अभिनन्दन एवं आभार आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी
रचना पटल पे आपका हार्दिक स्वागत है आदरणीय Manoj kumar Ahsaas जी
खूब सुन्दर रचना
इस सूंदर ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई l
बहुत बढ़िया ब्रज जी आपने बहुत अच्छी गजल कही
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