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गीत-हृदय का भ्रमर गुनगुनाता चला है।

हृदय का भ्रमर गुनगुनाता चला है।
नया सुर अधर पर सजाता चला है।
हृदय का भ्रमर.............

उजड़ जो गयी एक बगिया हुआ क्या,
बगीचे नए भी यहीं पर मिलेंगे।
नई नित्य कलियाँ सजाएंगी उपवन,
नए पुष्प अमृत-कलश ले खिलेंगे।
यही सोंचकर गीत गाता चला है।
हृदय का भ्रमर.............

तिमिर रात्रि का कब सदा ही रहेगा?
दिवा के उजाले भी चहुँ ओर होंगे।
नवोदित किरन तम का चीरेगी सीना,
प्रभा से प्रकाशित सकल वस्तु होंगे।
हृदय-तम में दीपक जलाता चला है।
हृदय का भ्रमर................

सदा दिन सुखों के न रहते यहाँ हैं ,
दुखो को ज़रा साथ अपने मिला लो।
मिला आज दुख है तो सुख भी मिलेगा,
तले अश्रु के स्वप्न सुख के सजा लो।
नया स्वप्न उर में सजाता चला है।
हृदय का भ्रमर..............

जगत में सभी को क्षुधा प्रेम की है,
जगह प्रेम से हर हृदय में बना लो।
दुखी-दीन मिल जाएं पथ में तुम्हें जो,
बढ़ा कर सहारे का उर से लगा लो।
हृदय हर हृदय से लगाता चला है।
हृदय का भ्रमर.................

सहज राह होती नही सत्य की है,
सदा कंटकों से भरा पथ मिलेगा।
धरे धैर्य-साहस जो आगे बढ़ो तुम,
विजय पथ तुम्हारे चरण चूम लेगा।
चुभन कंटकों की भुलाता चला है।
हृदय का भ्रमर...........
नया सुर अधर..........

रचनाकार-रामबली गुप्ता
मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment

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Comment by rajesh kumari on April 6, 2016 at 10:41am

बहुत सुन्दर गीत रामबली जी हार्दिक बधाई आपको 

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on April 5, 2016 at 10:34pm
क्या खूबसूरत गीत है 

Comment by रामबली गुप्ता on April 5, 2016 at 10:44am
रचना को मान देने के लिए हृदयतल से आभार आद.डॉ गोपाल नारायण जी
सुझाव भी आपका बेहतर है।पुनः आभार
मेरे ब्लॉग की अन्य रचनाओं को भी देखे और सुझाव दें तो आपकी बड़ी कृपा होगी मुझ पर।सादर
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on April 5, 2016 at 9:58am

वाह वाह रामबली जी , सुन्दर् रचना      .बढ़ा कर सहारे का उर से लगा लो।  इसको यदि इसतरह करें - बढ़ो बन सहारा ह्रदय से लगा लो 

सादर .

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