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आदरणीया प्राची जी , बहुत बढिया गीत रचना हुई है ! गीत का मुखड़ा बहुत बढिया लगा , आपको हार्दिक बधाइयाँ
बेहद सुन्दर सरस
//चाहा था रामायण होता अपने सपनों का संसार
उफ़! अपनी चाहत का पन्ना, बन बैठा रद्दी अखबार// ... बहुत अच्छी ताज़गी है इस भाव में।
सुन्दर रचना के लिए हार्दिक बधाई।
शंखनाद सी गूँजा करती
थी मन में आवाज़ तुम्हारी,
संयम नेह झलकता था तब
बात तुम्हारी थी हर प्यारी,
चीखमचिल्ली चुभती बातें, करतीं बस अब तो चीत्कार... बेहद खुबसूरत रचना है ये आपकी आदरणीया प्राची जी , समस्त पद अलौकिक सौंदर्य को स्वयं में समेटे हुए है , मोती जैसे शब्दों को भावों के धागे में पिरोया है , पढ़कर मन एकदम से चकित हुआ ,ह्रदय से बधाई प्रेषित है आपको .
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