2122 1212 22/112
ग़ज़ल
=====
आओ चेहरा चढ़ा लिया जाये
और मासूम-सा दिखा जाये
केतली फिर चढ़ा के चूल्हे पर
चाय नुकसान है, कहा जाये
उसकी हर बात में अदा है तो
क्या ज़रूरी है, तमतमा जाये ?
फूल भी बदतमीज़ होने लगे
सोचती पोर ये, लजा जाये
रात होंठों से नज़्म लिखती हो,
कौन पर्बत न सिपसिपा जाये ?
रात होंठों से नज़्म लिखती रही
चाँद औंधा पड़ा घुला जाये ..
काव्य-संग्रह छपा लिया उसने
अब तो उसका कहा सुना जाये
कौन इन्सान क्या पता ’सौरभ’
किस कहानी में नाम पा जाये
**********
(मौलिक और अप्रकाशित)
Comment
आपने इस ग़ज़ल की विशद व्याख्या कर दी, आदरणीय मिथिलेश भाई ! हार्दिक धन्यवाद !!
आदरणीय सौरभ सर,
बहुत शानदार ग़ज़ल कही है आपने. शेर दर शेर दाद हाज़िर है-
आओ चेहरा चढ़ा लिया जाये
और मासूम-सा दिखा जाये......................... शानदार मतला ... वाह वाह वाह... व्यंग्य का पैनापन गज़ब
केतली फिर चढ़ा के चूल्हे पर
चाय नुकसान है, कहा जाये..................... केतली वाला प्रतीक तो मुग्ध कर गया. मेरा तो एक बढ़िया प्रतीक हाथ से गया ... अद्भुत... इस शेर का अर्थ विस्तार देखकर चकित हूँ. अब तो अपने हिस्से में बाटली भर बची है --- बाटली फिर छुपा के दामन में / मय से नुकसान है, कहा जाए............ हा हा हा
उसकी हर बात में अदा है तो
क्या ज़रूरी है, तमतमा जाये ?................ क्या बढ़िया कहन है. आपका यही अंदाज़े-बयां दिल लूट लेता है.
फूल भी बदतमीज़ होने लगे
सोचती पोर ये, लजा जाये................................सही कहा... इस पर अब क्या कहा जाए. बस लजा ही सकते हैं.
रात होंठों से नज़्म लिखती हो,
कौन पर्बत न सिपसिपा जाये ?................ वाह वाह .... मीठा और गुदगुदाता शेर ...... ये शेर पढ़कर तो हम खुद को छूकर देख रहे हैं कि कही खुद भी सिपसिपा न गए हो. उला और सानी का जबरदस्त संयोजन. वाह वाह
काव्य-संग्रह छपा लिया उसने
अब तो उसका कहा सुना जाये................ बिलकुल सटीक व्यंग्य...... आत्ममुग्धता केवल और केवल हानिकारक है.
कौन इन्सान क्या पता ’सौरभ’
किस कहानी में नाम पा जाये ............. बढ़िया मक्ता.
आदरणीय सौरभ सर, इस शानदार ग़ज़ल पर दाद ओ मुबारकबाद कुबूल फरमाएं.
आओ चेहरा चढ़ा लिया जाये
और मासूम-सा दिखा जाये
केतली फिर चढ़ा के चूल्हे पर
चाय नुकसान है, कहा जाये
उसकी हर बात में अदा है तो
क्या ज़रूरी है, तमतमा जाये ? आदरणीय सौरभ सर नए अंदाज़ में खूबसूरत शेर कहे आपने
रात होंठों से नज़्म लिखती हो,
कौन पर्बत न सिपसिपा जाये ? आपने एक्सप्लेन किया उसके बाद शेर की बारीकी समझ आई
फूल भी बदतमीज़ होने लगे
सोचती पोर ये, लजा जाये। ... अभी भी इस शेर को समझने की कोशिश कर रहा हूँ ।
उम्दा प्रस्तुति के लिए मुबारकबाद....
सादर आभार आदरणीय समर साहब !
आदरणीय समर साहब, आप बहुत हद तक सही हैं. और ऐसा ही कुछ अर्थ निकलता हुआ भी है. मेरे कहने या पूछने का आशय शब्द के प्रयोग को लेकर था. मुझे तो मालूम तो था ही कि आप अर्थ बखूबी ’ताड़’ लेंगे.
वस्तुतः, चिपचिपाना, पिघलना या सिपसिपाना जैसे कुछ शब्द थे. जिसमें ’सिपसिपाना’ आंचलिक शब्द है. पिघलना की डिग्री बहुत ज़ियादा है, सो इसके चयन का सवाल ही नहीं था. ’चिपचिपाना’ आदरणीय बड़े भाई एहतराम इस्लाम भी समझ रहे थे. लेकिन, हमने बताया कि उसमें स्टिकीनेस बहुत अधिक है. ऐसा कि ’गोंदपन’ का भाव देता है. वे भी मेरे कहे से मुत्मईन हुए. सो आंचलिक शब्द ’सिपसिपाना’ उचित लगा जिसका अर्थ ’वस्तु के फ़लक पर नमी की मौज़ूदग़ी का भान’ होना है. इस ’भान होने’ में ही सारा कमाल है. अब सिपसिपाना क्यों का कारण समझ गये होंगे.
आदरणीय, मैं ग़ज़ल के व्यापक स्तर पर, विशेषकर आंचलिकता की पुट के स्तर की अकसर बात करता हूँ. यही कारण है, कि इस विधा की मेरी प्रस्तुतियों में कई शब्द ’हटके’ मिलते हैं. इसीसे मैं आप जैसे उस्ताद मोहतरमों से ऐसी और इसकी चर्चा करता हूँ.
शुभ-शुभ
प्रस्तुति पर अपनी भावनाएँ साझा करने केलिए हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय विजयशंकर भाई..
शुभ-शुभ
काव्य-संग्रह छपा लिया उसने
अब तो उसका कहा सुना जाये।।
साहित्यिक समझ को बहुत सुन्दर ( व्यंग ) शब्द मिले , बहुत खूबसूरत ग़ज़ल , बधाई , आदरणीय सौरभ पांडेय जी , सादर।
आदरणीय समर साहब, आपकी अनुशंसा और हौसलाअफ़ज़ाई पर मैं मुग्ध हूँ. दिल खोल के आपने दाद दी है.
लेकिन मैं सुनना चाहता था कि ’सिपसिपा’ जैसे क़ाफ़िये पर आपकी क्या राय है ? वैसे, मुझे अहसास है, कि आपको मालूम है, मैं अलग अंदाज़ और ज़ुबान की ग़ज़लें कहता हूँ.
अब आगे आप कहेंगे तो फिर कुछ बताऊँगा. .. :-))
सादर
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online