उदास चेहरा ...
तुम आये
और मैं तुम्हें
बंद पलकों से
निहारती रही
तुम्हारी हर आहट को
मैं अपने अंदर समेटती रही
वो चुप सा
तुम्हारा उदास चेहरा
मेरी मजबूरी को कचोटता रहा
तुम्हारे हाथों के गुलाब की
इक इक पंखुड़ी
अश्कों में भीगी
मुझपर गिरती रही
मैं तुम्हारे अश्कों की आतिश में
इक शमा सी पिघलती रही
तुम ज़मीं तक
मुझपर झुकते चले गए
बेबस पुकार मुझसे टकराकर
कहीं खला में खो गयी
तुम मेरी लहद में
आ न सके
मैं अपनी लहद में
तड़पती रही
शाम का धुंधलका बढ़ता गया
और बढ़ती गयी मेरी तन्हाई भी
बंद पलकों की चिलमन से
बेबस सी मैं तुम्हें
जाते हुए निहारती रही
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीया प्रतिभा जी प्रस्तुति को आत्मीय मान देने का हार्दिक आभार।
कोमल एहसासों से ओतप्रोत ,सुन्दर रचना ,हमेशा की तरह , हार्दिक बधाई प्रेषित है आदरणीय सुशील सरना जी
आदरणीया राहिला जी प्रस्तुति में निहित भावों को आत्मीय मान देने का हार्दिक आभार।
आदरणीय बशर भारतीय जी आपकी स्नेहिल प्रशंसा का दिल से आभार।
आदरणीय समर कबीर साहिब प्रस्तुति पर आपकी आत्मीय सराहना का दिल से आभार।
आ. कल्पना भट्ट जी प्रस्तुति के भावों को मान देने का हार्दिक आभार।
वाह | बहुत सुंदर पंक्तियाँ | हार्दिक बधाई आदरणीय |
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