For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

तज़मीन बर तज़मीन

मफ़ाईलुन मफ़ाईलुन मफ़ाईलुन मफ़ाईलुन

तज़मीन बर तज़मीन हज़रत "क़मर" उज्जैनी बर ग़ज़ल हज़रत-ए-'मख़मूर दहलवी'


दिल-ए-बर्बाद ये हसरत ,ये अरमाँ कौन देखेगा
हमारे दिल में जो है दर्द पिन्हाँ कौन देखेगा
बताओ तो ज़रा ये ग़म का तूफ़ाँ कौन देखेगा
'ख़ुशी देखी है बर्बादी का समाँ कौन देखेगा'
'चमन से रुख़्सत-ए-दौर-बहाराँ कौन देखेगा'
'जलाकर दिल मिसाल-ए-शम्अ-ए-सौज़ाँ कौन देखेगा'
"मुहब्बत में शब-ए-तारीक-ए-हिजराँ कौन देखेगा
हमीं देखेंगे ये ख़्वाब-ए-परीशाँ कौन देखेगा"
_____

रहेगा होश में कब कोई इंसाँ कौन देखेगा
किसे है शौक़ बर्क़-ए-तूर रक़्साँ कौन देखेगा
नहीं किसको बताओ ख़ौफ़-ए-ईमाँ कौन देखेगा
'है किस में ताब ये हुस्न-ए-नुमायाँ कौन देखेगा'
'क़रीब आकर जमाल-ए-रूए जानाँ कौन देखेगा'
'किसे है जान से जाने का अरमाँ कौन देखेगा'
"इन आँखों से तजल्ली को दरख़्शाँ कौन देखेगा
उठा भी दो नक़ाब-ए-रूए ताबाँ कौन देखेगा"
_____

वो होते पास तो आसान होती मौत भी अपनी
रहेगी उन से पौशीदा हमेशा बेबसी अपनी
क़ज़ा सर पर खड़ी है उम्र पूरी हो चुकी अपनी
'हुई है आज तक पूरी न हो पूरी ख़ुशी अपनी'
'वो आ जाते तो हम कहते तमन्ना-ए-दिली अपनी'
'पस-ए-मुर्दन ही अब जायेगी ये बैचारगी अपनी'
"यही इक रात है बस काइनात-ए-ज़िन्दगी अपनी
सहर होते हुए ऐ शाम-ए-हिजराँ कौन देखेगा"
_____

गवारा हो नहीं सकता कभी ये मेरी ग़ैरत को
हमेशा दिल में रक्खा मैंने अपने दिल की हसरत को
सितम सह कर भी पौशीदा रखा है इस हक़ीक़त को
'निहाँ रक्खा है दिल में उम्र भर सौज़-ए-मुहब्बत को'
'छुपाया है अभी तक मैंने उनसे अपनी वहशत को'
'क़लक़ होगा उन्हें,देखेंगे जब वो मेरी हालत को'
"कुछ ऐसा हो दम-ए-आख़िर न आऐं वो अयादत को
उन्हें अपने किये पर यूँ पशेमाँ कौन देखेगा"
_____

"समर" साहिब ये दुनिया है हमें दुनिया से क्या लेना
करेगी हर तरह बदनाम ये,इसका भरोसा क्या
इरादा मैकशी का है तो फिर चलिये गिला कैसा
' "क़मर" हमने किसी के फ़ेल से कब वास्ता रक्खा'
'हमारी बादा नोशी का है फिर दुनिया को क्यूँ शिकवा'
'नहीं जा सकते मैख़ाने में हम अच्छा बहुत अच्छा'
"चलो "मख़मूर" तन्हाई में शग़्ल-ए-मैकशी होगा
छुपा कर ले चलो पीने का सामाँ कौन देखेगा"

"समर कबीर"
मौलिक/अप्रकाशित

Views: 1330

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Samar kabeer on August 9, 2016 at 10:27pm
जनाब नादिर ख़ान साहिब,वालैकुमस्सलाम,तख़लीक़ आपको आई,लिखना सार्थक हुवा,आपकी दुआ के लिये आपका शुक्रगुज़ार हूँ,आपकी फ़रमाइश ज़रूर पूरी की जायेगी । फ़िलहाल तबीअत ठीक नहीं चल रही ,सुख़न नवाज़ी के लिये आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ ।
Comment by Samar kabeer on August 9, 2016 at 10:16pm
जनाब ब्रजेश कुमार जी आदाब,सुख़न नवाज़ी के लिये आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ ।
Comment by नादिर ख़ान on August 6, 2016 at 11:35pm

वाह.... जनाब समर कबीर साहब क्या लाजवाब तज़मीन बर तज़मीन कही आपने, बहुत मन मोहक विधा है बस जी मे आता है पढ़ते रहो (मिठास घुलती और बढ़ती जा रही थी)  आपने इस विधा की जो जानकारी दी उसके लिए बहुत शुक्रिया .... जैसा की आपने बताया  हिन्दुस्तान में तज़मीन तो कही गई लेकिन तज़मीन बर तज़मीन आपके  वालिद-ए-मरहूम हज़रत सय्यद रफ़ीक़ अहमद "क़मर" उज्जैनी साहिब ने पहली बार कही और इसके बाद उन्हीं के नक़्श-ए-क़दम पर चलते हुए आपने इस विधा को आगे बढ़ाया अल्लाह आपके अब्बा मरहूम को जन्नत नसीब फरमाये .... उम्मीद है आगे भी तज़मीन बर तज़मीन  पढ़ने को मिलेगी इंतज़ार रहेगा ....अस्सलामो  अलैकुम 

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on June 30, 2016 at 8:43pm

वाहह आदरणीय ...बहुत ज़्यादा तो नही जनता लेकिन पढ़ के बहुत अच्छा लगा

Comment by Samar kabeer on June 6, 2016 at 6:21pm
जनाब सौरभ पांडे जी आदाब,इस प्रस्तुति पर आपने अपना क़ीमती समय दिया बारीक बीनी से जायज़ा लिया,मिहनत सफ़ल हुई,दाद-ओ-तहसीन के लिये आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ ।
एक बात आपके माध्यम से मंच को बताना चाहता हूँ कि आज से रमज़ानुल मुबारक का महीना शुरू हो रहा है इसलिये मंच से एक माह तक छुट्टी ले रहा हूँ,अब शायद ईद के बाद ही मंच पर हाज़िर हो सकूँगा,दुआओं की दरख्वास्त है ।
Comment by Samar kabeer on June 6, 2016 at 6:13pm
मोहतरमा प्रतिभा पांडे जी आदाब,मुझे भी इस बात पर फ़ख़्र है कि इसकी इब्तिदा मेरे वालिद-ए-मरहूम ने की,रचना आपको पसन्द आई लिखना सार्थक हुआ,दाद-ओ-तहसीन के लिये आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ ।
Comment by Samar kabeer on June 6, 2016 at 6:08pm
जनाब श्री सुनील जी आदाब,यक़ीनन ओबीओ इस विधा को आगे बढ़ाने में ज़रूर अपना योगदान देगा,ये प्रस्तुति आपको पसन्द आई लिखना सार्थक हुआ,दाद-ओ-तहसीन के लिये आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ ।
Comment by Samar kabeer on June 6, 2016 at 6:03pm
जनाब अशोक कुमार रक्ताले साहिब आदाब,तज़मीन बर तज़मीन आपको पसन्द आई मेरा लिखना सार्थक हुआ,इस दाद-ओ-तहसीन के लिये आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हु ।

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 6, 2016 at 1:53pm

ओह ! कमाल !! फिर कमाल पर एक और कमाल !!! 

आदरणीय समर साहब, इस विधा की खूबसूरती दो तरह के विचारों को सिंक्रोनाइज़्ड करने में है आपकी इस प्रस्तुति में तो तीन-तीन विचार एक साथ नत्थी हुए हैं. और क्या आवृति बनी है ! बहुत खूब, बहुत खूब ! 

सादर

Comment by pratibha pande on June 6, 2016 at 12:44pm

आदरणीय  समर कबीर जी , इस  सुन्दर विधा से हमें मिलवाने के लिए आपका धन्यवाद ,इसकी शुरूआत आपके वालिद साहेब ने की थी ये सुनकर ख़ुशी और गर्व हुआ ,,    आपको हार्दिक बधाई प्रेषित है इस रचना पर ..सादर 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .

दोहा पंचक  . . . .( अपवाद के चलते उर्दू शब्दों में नुक्ते नहीं लगाये गये  )टूटे प्यालों में नहीं,…See More
14 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर updated their profile
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार.. बहुत बहुत धन्यवाद.. सादर "
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय। "
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आपका हार्दिक आभार, आदरणीय"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय दयाराम जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ पांडेय सर, बहुत दिनों बाद छंद का प्रयास किया है। आपको यह प्रयास पसंद आया, जानकर खुशी…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय आदरणीय चेतन प्रकाशजी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त चित्र पर बढ़िया प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभा जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करती मार्मिक प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय दयाराम जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करते बहुत बढ़िया छंद हुए हैं। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय दयाराम मथानी जी छंदों पर उपस्तिथि और सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार "
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service