कमांडर ऑफ़ चीफ़ - "शाबाश राकेश ! तुम्हारा शौर्य पराक्रम अन्य सैनिकों से अलग है । तुम्हारे शौर्य और पराक्रम में जोश है,दीवानगी है,आक्रोश है । वेल डन ।"
राकेश राणा - "यस सर । देश प्रेम मेरा परम धर्म है । देखना एक दिन मैं इस धर्म को निभाकर दिखाऊँगा । माँ को यही वचन देकर आया हूँ ।"
सीमा पर से गोली बारी शुरू हुई और देखते ही देखते युद्ध छिड़ गया । राकेश राणा अंत समय तक लड़ते लड़ते वीर गति को प्राप्त हो गया ।
तिरंगे में लिपटा ताबूत जैसे ही गाँव पहुँचा ,जन सैलाब उमड़ पड़ा । राकेश राणा की माँ शारदा देवी राणा चीख़ चीख़ कर यही कह रहीं थी कि "आज मेरे बेटे ने देश प्रेम का धर्म शहीद होकर निभाया है । मैं भी अपना धर्म निभाऊँगी । अपने बेटे को ख़ुद मुखाग्नि दूँगी ।" सारे गाँव वाले हतप्रभ थे ।
"समर कबीर"
मौलिक/अप्रकाशित
Comment
आदरणीय समर कबीर साहब सादर नमस्कार, मैं लघुकथा की बारीकियों को तो नहीं जानती मुझे यह लघुकथा बहुत अच्छी लगी. सादर.
आदरणीय समर कबीर साहब सादर नमस्कार, मैं लघुकथा की बारीकियों को बहुत अच्छे से नहीं जानता किन्तु मुझे यह लघुकथा अच्छी लगी. सादर.
देश प्रेम से ओत प्रोत प्रभावशाली रचना पर बधाई प्रेषित है आदरणीय समर कबीर जी ... घटनाओं के समय अलग अलग हो गए हैं. ., आप कमांडर के साथ राकेश के वार्तालाप को फ़्लैश बेक में डाल सकते हैं जो वो सोच रहा है राकेश के दाह संस्कार के समय और फिर वर्तमान में लौटता है राकेश की माँ के संवाद को सुनकर
सादर
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