बहरे मुजतस मुसमन मख़बून महज़ूफ
मुफ़ाइलुन फ़इलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन
1212 1122 1212 22
कहाँ गए थे यूँ ही छोड़कर मुझे तनहा
बिना तुम्हारे मुझे ये जहां लगे तनहा
कभी-कभी तो बहुत काटता अकेलापन
मगर न भूल कि पैदा सभी हुये तनहा
तमाम उम्र जो बर्दाश्त है किया हमने
समझ वही सकता जो कभी जिये तनहा
मगर न फिर कभी वो बात रात आ पायी
है याद आज भी वो शाम जब मिले तनहा
बिखर ही भीड़ में जाती बुलंद आवाजे
है आरजू मुझे कोई कभी सुने तनहा
अजीब ढंग से उसने भी है गढ़ी किस्मत
उधर जो आप तो हम भी इधर रहे तनहा
यहाँ जहान में क्यों है किसे पता जीवन
है जिदगी यहाँ तनहा तो मौत भी तनहा
(मौलिक व अप्रकाशित )
Comment
अच्छी कोशिशें अच्छे परिणामों का वाहक होती हैं. आपकी कोशिश पर मन मुग्ध है. वैसे भी कहन और कथ्य केलिए कहना ही क्या ! आप अनुभवी और प्रकृति-पारखी तो हैं ही.. !
सादर शुभकामनाएँ
आ०अनुज भंडारी जी , आपका समर्थन पाकर मन में बड़ा संतोष हुआ . सादर .
आ० राजेन्द्र कुमार जी , प्रोत्साहन हेतु धन्यवाद.
आ० जयनित त्कुमार जी . आपका सादर आभार
आ० रवि शुक्ल जी , आप मेरी गजलों पर अपना समय देकर मेरा हौसला बढ़ रहे हैं .मै आभारी हूँ . गजल रचना मैंने ओ बी ओ मंच पर लिखनी शुरू की है अभी बिलकुल नौसिखिया हूँ पर प्रयास कर रहा हूँ. . आपकी इस्लाह मेरी ताकत है आप इस सिलसिले को बनाये रखें . सादर .
आदरणीय बड़े भाई गोपाल जी , बेहतरीन गज़ल हुई है , बहुत कठिन बह्र पर आपने काम किया और सफलता पूर्वक काम किया । आपको हार्दिक बधाइयाँ ।
आदरणीय गोपाल नारायण जी आपको ग़ज़ल कहते देख कर बहुत खुशी होती है बधाई स्वीकार करें इस आहंग खेज बह्र को साधने के लिये
तमाम उम्र जो बर्दाश्त है किया हमने
समझ वही सकता जो कभी जिये तनहा इस में सानी मिसरे को अगर इस तरह से करे तो देखियेगा
समझ सका है वही जो कभी जिये तनहा सकता सगण के अनुसार 112 है ।
मगर न फिर कभी वो बात रात आ पायी
है याद आज भी वो शाम जब मिले तनहा हमें लगता है उला मे रात को किसी अन्य शब्द से बदलना चाहिये क्योंकि कथन को देखें तो वो बात वो रात नहीं आई और सानी में हमें वो शाम आज तक याद है जब हम तनहा मिले थे । सानी अपने आप मे पूरा है और बहुत शानदार तरीके से व्यक्त हुआ है ।
बिखर ही भीड़ में जाती बुलंद आवाजे
है आरजू मुझे कोई कभी सुने तनहा वाह वाह वााह डाक्टर साहब क्या ख्याल लाए है निकाल के बहुत बहुत बधाई
अजीब ढंग से उसने भी है गढ़ी किस्मत
उधर जो आप तो हम भी इधर रहे तनहा अय हय अय हय वाह वाह उदास दिल की कोई सूरत देखना चाहे तो इस श्ेार में तलाश सकता है इसे शेर को आप चाहे तो थोड़ी नफासत और दे सकते है ।
यहाँ जहान में क्यों है किसे पता जीवन
है जिदगी यहाँ तनहा तो मौत भी तनहा इस शेर में जीवन के प्रति जगत के प्रति आपका दर्शन स्पष्ट समझ आ रहा है
बहुुत बहुत बधाई आदरणीय आपको इस गजल के लिये । आपसे और भी ग़ज़लों की अपेक्षाएं बढ गई है । गजल हमारी दीवानगी है इसलिये इस पर चर्चा के लिये सदैव तत्पर रहते हैै आशा है आप छोटा मुह बड़ी बात न लेकर अपना आर्शीवाद बनाये रखेंगे । सादर
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