For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

पथरीली ज़मीन ....

पथरीली ज़मीन ....

जाने क्यूँ
आजकल आईना
ख़फ़ा ख़फ़ा रहता है
चुपके चुपके
अजनबी सूरत से
जाने क्या कहता है
अब ख़ुद से मुझे
इक दूरी नज़र आती है
दूर कोई परछाईं
अधूरी नज़र आती है
कभी ये नज़र का धोखा
नज़र आता है
कभी कोई जा जा के
लौट आता है
क्यों ये बेसब्री ओ बेकरारी है
किसके लिए आँखों ने
तारे गिन गिन रात गुज़ारी है
मैं अपने साथ
कहां कुछ लाया था
उसकी याद
उसी मोड़ पे छोड़ आया था
किसे देखता मुड़ के मैं
जाने वाला इक फरेबी साया था
फिर क्यों कोई हर लम्हा
मेरे ज़हन में करवटें लेता है
मेरे लबों पे
अपने लम्स छोड़ देता है
चश्मे-नम
हर भरम तोड़ देती है
किसी की याद
रूह में तड़प छोड़ देती है
मैं
आईने में
तन्हा सा रह जाता हूँ
फिर धीरे धीरे बीते लम्हों में
ख़ुद को समेट
हकीकत की
पथरीली ज़मीन पर
लौट आता हूँ

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 504

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sushil Sarna on June 28, 2016 at 1:28pm

आदरणीय  Dr Ashutosh Mishra जी सृजन के भावों को आत्मीय मान देने का हार्दिक आभार।

Comment by Dr Ashutosh Mishra on June 27, 2016 at 10:15pm
आदरणीय सुशील जी इस रचना के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें सादर
Comment by Sushil Sarna on June 27, 2016 at 1:06pm

आदरणीया प्रतिभा जी प्रस्तुति पर आपकी आत्मीय सराहना का हार्दिक आभार।

Comment by Sushil Sarna on June 27, 2016 at 1:06pm

आदरणीया राहिला जी ये आपकी सहृदयता है कि आप सृजन के भावों को इतना मान देती हैं। प्रस्तुति की आत्मीय सराहना के लिए दिल से शुक्रिया।

Comment by Sushil Sarna on June 27, 2016 at 1:06pm

आदरणीय सतविंदर जी प्रस्तुति की आत्मीय सराहना का दिल से आभार।

Comment by Sushil Sarna on June 27, 2016 at 1:06pm

आदरणीय हर्ष महाजन जी सृजन के भावों को आत्मीय मान देने का हार्दिक आभार।

Comment by pratibha pande on June 26, 2016 at 6:46pm

फिर धीरे धीरे बीते लम्हों में 
ख़ुद को समेट 
हकीकत की 
पथरीली ज़मीन पर 
लौट आता ह..... बहुत सुन्दर भावाव्यक्ति है   मेरी हार्दिक बधाई लीजिये आदरणीय सुशील सरना जी 

Comment by Rahila on June 26, 2016 at 1:23pm
आपकी रचनाएँ इतनी सरल और खूबसूरत होती है कि जब भी मौका मिलता है पढ़ती हूँ और बिना तारीफ के नहीं रह पाती।बहुत शानदार प्रस्तुति है आदरणीय सर जी! सादर
Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on June 26, 2016 at 8:36am
बेहतरीन भावाभिव्यक्ति!हार्दिक बधाई आदरणीय सुशिल सरना जी।
Comment by Harash Mahajan on June 26, 2016 at 12:15am

मैं अपने साथ
कहां कुछ लाया था
उसकी याद
उसी मोड़ पे छोड़ आया था.........अति सुंदर !1
आ० Sushil Sarna जी इस सुंदर रचना के लिए बहुत बहुत बधाई !!

सादर !!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"रोला छंद . . . . हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।सदा सत्य के साथ , राह  पर …"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service