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माँ , रहती हो हर पल मेरे साथ .....

जब निकलता हूँ घर से बाहर , चाहे मैं पलटकर देखूं ना देखूं
खड़ी रहती हो तुम दरवाज़े पर ही जब तक हो ना जाऊं ओझल गली के मोड़ पर ,
और फिर चलने लगती हो साथ मेरे दुआओं के रूप में .....

नींद ना आये जब मुझे तो गुज़ार देती हो सारी रात ,
थपकियाँ देते हुए मेरे माथे पर ,
और सो जाता हूँ मैं सुकून से .....

कभी जो आना-कानी करूँ खाने के नाम पे ,
तो यूं खिलाती हो अपने हाथों से ,
मानो भूख मेरी शांत होती हो और तृप्त तुम्हारी आत्मा...

यूं तो जाने कितनी ही गलतियों को मेरी,
देखकर भी कर जाती हो अनदेखा चुपचाप ,
पर, जो दर्द की एक भी लकीर उभर आती है चेहरे पर
तो एक पल में पहचान लेती हो उसे .....

उलझ जो जाता हूँ जिंदगी के सवालों में कभी ,
झट से सुलझा देती हो उन्हें ,
जैसे चुटकियों में सुलझा दिया करती थीं गणित के उन कठिन सवालों को .....

निराश हो जाऊं ग़र कभी अपने ही असफल प्रयासों से ,
तो पूरे सुकून से बस इतना ही कहती हो कि "बहुत अच्छा किया "
और दे देती हो प्रेरणा अनगिनत सफल प्रयासों के लिए...

माँ ,
तुमसे ही है अस्तित्व मेरा ,
तुम ही जीवन हो ,
तुम हो तो मैं हूँ ... माँ ||

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Comment by Veerendra Jain on July 5, 2011 at 1:13pm
Vasudha ji... bilkul sahi kaha aapne shabdon ko banakar maa ko bayaan nahi kiya ja sakta...isliye main bas wo likhne ki koshish ki jo roz hota hai...pasand karne ke liye bahut bahut dhanyawad...
Comment by Vasudha Nigam on July 5, 2011 at 12:59pm
मा को शब्दो मे बता पाना बेहद कठिन हैं, बहुत ही खूबसूरती से व्याख्यान किया हैं आपने..
Comment by Veerendra Jain on May 12, 2011 at 11:36pm
 Ganesh ji , Arun ji , Ashish ji... maa ke baare men jitna kaha jaye utna kam hai... aap logon ne rachna pasand kar mera protsahan badhaya..iske liye bahut bahut aabhar...
Comment by आशीष यादव on May 12, 2011 at 1:52pm
maine bhi isi ma ke upar kuchh likha tha. dekh lijiyega.
http://www.openbooksonline.com/profiles/blogs/5170231:BlogPost:20628
Comment by आशीष यादव on May 12, 2011 at 1:48pm

mata akhir mata hi hoti hai.

bahut sundar rachna hai ma ke upar. mera badhai kubul kare.

Comment by Abhinav Arun on May 10, 2011 at 1:14pm
sachmuch maa ke sneh kee koi barabaree naheen wo har haal men apnee santaan ko sukhee rakhna chaahtee hai .behad prabhaav kaaree rachna keliye virendra jee badhaae sweekareen >

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on May 10, 2011 at 11:35am

तो यूं खिलाती हो अपने हाथों से ,
मानो भूख मेरी शांत होती हो और तृप्त तुम्हारी आत्मा.

बेहद खुबसूरत ख्याल, यही तो है माँ की ममता, अपने मुह के निवाले को भी माँ हमारे मुह में डाल देती है, हे माँ सच धरती पर तुमसे बड़ा और महान कोई नहीं |


जो दर्द की एक भी लकीर उभर आती है चेहरे पर
तो एक पल में पहचान लेती हो उसे

यही तो बात है, इक माँ ही है जो अपने बच्चे के हर हाव भाव को पहचान लेती है, माँ की नज़रों से बचना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है |

माँ ,
तुमसे ही है अस्तित्व मेरा ,

 

यथार्थ है वीरेन्द्र जी , बधाई इस खुबसूरत रचना हेतु |

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