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मन उस आँगन ले जाए ( गीतिका )

 

आकर साजन तू ही ले जा क्यूँ ये सावन ले जाए

अधरों पर छायी मस्ती ये क्यूँ अपनापन ले जाए

 

भिगो रहा है बरस-बरस कर मेघ नशीला ये काला

कहीं न ये यौवन की खुश्बू मन का चन्दन ले जाए

 

कड़क-गरज डरपाती बिजली पल-पल नभ में दौड़ रही

कहीं न ये चितवन के सपने संचित कुंदन ले जाए

 

बिंदी की ये जगमग-जगमग खनखन मेरी चूड़ी की,

बूँदों की ये रिमझिम टपटप छनछन-छनछन ले जाए

 

पुहुप बढाते दिल की धड़कन शाखें नम कर डोल रहीं

कहीं न अब  अँगड़ाई का फन भीगा कानन ले जाए  

 

बढ़ी जा रही भीग-भीगकर चिकुर जाल की ये उलझन

कुन्तल से हरियाला तरुवर हर्षित उपवन ले जाए

 

रुनझुन-रुनझुन करती पायल बिछिया से कह आयी है

सारे बंधन तोड़ सखी अब मन उस आँगन ले जाए.

 

मौलिक/अप्रकाशित.

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Comment by Ashok Kumar Raktale on July 21, 2016 at 7:51am

उतासावर्धन के लिए सादर आभार आदरणीय रामबली गुप्ता जी.

Comment by रामबली गुप्ता on July 20, 2016 at 10:46pm
वाह वाह आदरणीय अशोक रक्ताले जी बहुत ही सुंदर रचना हहुई है। सादर बधाई स्वीकर करें।
Comment by Ashok Kumar Raktale on July 20, 2016 at 7:44pm

आदरणीय समर कबीर साहब सादर नमस्कार, प्रस्तुत गीतिका पर आपसे तारीफ़ पाकर मन को बहुत संतोष हुआ. आपका दिल से आभार.सादर.

Comment by Ashok Kumar Raktale on July 20, 2016 at 7:42pm

आदरणीय सतविन्द्र कुमार जी सादर,प्रस्तुति आपको आनंदित कर सकी, मेरी रचना सार्थक हुई.सादर आभार.

Comment by Ashok Kumar Raktale on July 20, 2016 at 7:42pm

आदरणीय सुशील सरना साहब सादर, प्रस्तुत गीतिका आपको अच्छी लगी मेरी रचना सफल हुई. सादर आभार.

Comment by Samar kabeer on July 20, 2016 at 5:08pm
जनाब अशोक कुमार रक्ताले जी आदाब,बहुत उम्दा गीतिका लिखी है आपने,अल्फ़ाज़ मोती की तरह जड़ दिये हैं वाह, शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं ।
Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on July 20, 2016 at 4:48pm
आनन्दित करती सुंदर गीतिका हुई है आदरणीय अशोक कुमार रक्ताले जी।सादर हार्दिक बधाई
Comment by Sushil Sarna on July 20, 2016 at 2:40pm

रुनझुन-रुनझुन करती पायल बिछुओं से कह आयी है
सारे बंधन तोड़ सखी अब मन उस आँगन ले जाए.

वाह आदरणीय रक्ताले साहिब मौसम के अनुरूप बहुत ही सुंदर गीतिका का सृजन हुआ है , हार्दिक बधाई स्वीकार करें।

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