संशोधित
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मसअले कितने मुझे तेरे सवालों में मिले
यूँ अँधेरों की झलक दिन के उजालों में मिले
आपके ग़म से किसी को कोई निस्बत ही कहाँ
बेबसी दर्द हमेशा बुरे हालों में मिले
अब मेरे शहर में भी लोग खिलाड़ी हुए हैं
पैंतरे खूब हर इक शख़्स की चालों में मिले
चंद लम्हात मसर्रत के सुकूँ के कुछ पल
ऐसे मौके तो मुझे सिर्फ ख़यालों में मिले
दोस्ती और मुहब्बत के मनाज़िर हर सुब्ह
मेज़ पर लुढ़के हुए मय के पियालों में मिले
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आ० भाई शिज्जु जी इस सूंदर प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई .
चंद लम्हात मसर्रत के सुकूँ के कुछ पल
ऐसे मौके तो मुझे सिर्फ ख़यालों में मिलें
दोस्ती और मुहब्बत के मनाज़िर हर सुब्ह
मेज़ पर लुढ़के हुए मय के पियालों में मिलें
बहुत खूब आदरणीय शिज्जु शकूर साहिब आपने नज़ाकत भरे अहसासों को बहुत ही ख़ूबसूरती से शेरों में पिरोया है। दिल से दाद कबूल फरमाएं सर।
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